Book Title: Kavyalankar Sutra Vrutti
Author(s): Vamanacharya, Vishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
Publisher: Atmaram and Sons

View full book text
Previous | Next

Page 175
________________ २७६ ] काव्यालङ्कारसूत्रवृत्तौ [ सूत्र ३०-३२ एते चालङ्काराः शुद्धा मिश्राश्च प्रयोक्तव्या इति विशिष्टानामलङ्काराणां मिश्रितत्वं संसृष्टिरित्याह-अलङ्कारस्यालङ्कारयोनित्व ससृष्टि: । ४,३३० ॥ अलङ्कारस्यालङ्कारयोनित्वं यदसौ संसृष्टिरिति । संसृष्टिः संसग: सम्बन्ध इति ॥३०॥ तद्भेदावुपमारूपकोत्प्रेक्षावयवी । ४, ३, ३१ । तस्याः संसृष्टेर्भेदावुपमा रूपकश्चोत्प्रेक्षावयवश्चेति ॥ ३१ ॥ उपमाजन्यं रूपकमुपमारूपकम् । ४, ३, ३२ । स्पष्टम् । यथानिरवधि च निराश्रयञ्च यत्र स्थितमनिवर्तित कौतुकप्रपञ्चम् । प्रथम इह भवान् स कूर्ममूर्तिर्जयति चतुर्दशलोकवल्लिकन्दः ॥ Com यह अलङ्कार शुद्ध और मिश्र रूप में भी प्रयुक्त हो सकते है । इसलिए विशिष्ट अलङ्कारो का मिश्रण संसृष्टि [ अलङ्कार ] होता है, यह [ अगले सूत्र में] कहते है- [ एक ] अलङ्कार का जो अलङ्कार हेतुत्व [ अर्थात् दूसरे अलङ्कार के साथ कार्यकारण भाव सम्बन्ध ] है उसको संसृष्टि [ अलङ्कार ] कहते है । [ एक ] अलङ्कार का जो [ दूसरे ] अलङ्कार के प्रति हेतुत्व [ अर्थात् दूसरे अलङ्कार के साथ जो कार्यकारण भाव सम्बन्ध ] है वह संसृष्टि [ अलङ्कार कहलाता ] है । संसृष्टि [ का अर्थ ] संसर्ग [ अर्थात् ] सम्बन्ध है ॥ ३० ॥ उसके 'उपमारूपक' तथा 'उत्प्रेक्षावयव' दो भेद है । उस संसृष्टि के उपमारूपक और उत्प्रेक्षावयव [ यह ] दो भेद है । 'अलङ्कारयोनित्व' जो संसृष्टि का लक्षण किया है उसमे एक 'अलङ्कार कारण है जिसमें' इस प्रकार का बहुव्रीहि समास करके उपमारूपक को सृष्टि कहा जाता है क्योकि उसमे उपमा रूपक का कारण है । ओर दूसरे भेद 'उत्प्रेक्षावयव' मे अलङ्कारयोनित्व पद मे तत्पुरुष समास किया जाता है । उत्प्रेक्षा का अवयव ‘उत्प्रेक्षावयव' कहलाता है । इस प्रकार ससृष्टि के दो भेदो मे 'अलङ्कारयोनित्व' पद के दो भिन्न-भिन्न समास किए जाते है ॥ ३१ ॥ इन भेदो मे से पहले उपमारूपक का लक्षण करते हैं । उपमा से जन्य रूपक उपमारूपक [ कहलाता ] है | [ सूत्र का अर्थ ] स्पष्ट है । [ उदाहरण ] जैसेजिनके ऊपर यह अनन्त [ निरवधि ] और [ अन्य ] किसी ग्राधार पर

Loading...

Page Navigation
1 ... 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220