Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ मतवालाओ जनसमाजमा भ्रमणाओ उत्पन्न करी रह्या हता. शासनप्रत्यनीको परमात्माना शासनने छिन्नभिन्न करवा चोमेरथी मरणीया प्रयास करी रह्या हता वो थी चाली आवती संवेगी मुनिओ, श्रीपूज्यो, भट्टारको अने यतिओ वच्चेनी सुमेलभरी परिस्थितिनो संवेगीओ द्वारा जाणे अजाणे तेओनौ सत्ताने पडकारवामां आवता करुण अंत आवी रह्यो हतो यतिओ पण निरपेक्ष थता चाल्या हता. ज्ञाननी मात्रा पण घणी नीची उतरी गई हती. आवी गंभीर अस्थिर परिस्थिति वच्चे पण जेम काजल धेरी अमासनी घोर अंधकार भरी रजनौमां पण कोक कोक तारलिया टमटमता होय छे अने अंधकारने उलेचवानो प्रयास करता होय छे तेम शासन प्रत्येनी सम्पूर्ण वफादारीमाथी जन्मेली त्याग अने खार्पणनी भावनाथी शासनने स्थिर दृढ अने तेजस्विताने अमर राखवा जे महात्मा मुनिओ कार्य द्वारा विशाल जनसमाजना हैयाना सिंहासन उपर बिराजमान होय तो एकमात्र विद्वद्वरेन्द्र यथार्थनामा श्रीमद् झवेरसागरजी महाराज साहेब हता. महापुरुष : आ महापुरुषना जीवन विषे कोइ विशेष माहिती उपलब्ध नथी पण तेमना गाढ परिचयमा आवेला लिंबडी उदयपुर विगेरेना वयोवृद्ध श्रावको द्वारा सांभलवा मलता संस्मरणो तेमज तेमनी उपर आवेला पत्रो तेमना जीवननी अमर यशोगाथा आपणी समक्ष रजु करे छे. तेओश्रीना जीवनना अंतिम वर्षो मां पण शिष्यपरिवारनो विशाल वर्ग न हतो.

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98