Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 56
________________ निर्माण तेजसकार्मणवज्रदुःस्वरसुस्वरसाताऽसातान्यतरोऽन्त्यान्त-सुभगादेययशोऽन्यतरवेदनीयत्रसत्रिकपञ्चे न्द्रियनरगत्यायुर्जिनोच्चः । १. मिथ्यात्वगुणस्थाने-जिननाम, आहारकठिक-आहारकशरीर अने आहारक अंगोपांग, मिश्रमोहनीय अने समकित. मोहनीय ए पांच सिवाय ११७ प्रतिओ उदयमां होय छ । २. सास्वादनगुणस्थानमां-सूक्ष्मत्रिक-सूक्ष्म, अपर्याप्त अने साधारण, आतप, मिथ्यात्व अने नरकानुपूर्वी सिवाय १११ प्रकृतिमो उदयमा होय । ३. मिश्रगुणस्थानमां-अनंतानुबंधिकषाय-क्रोध, मान, माया अने लोभ, स्थावर, एकेंद्रिय, विकलेंद्रिय-बेइंद्रिय, तेइंद्रिय अने चउरिद्रिय अने तिर्यंचानुपूर्वी मनुष्यानुपूर्वी अने देवानुपूर्वी त्रण आनुपूर्वी रहित अने मिश्रमोहनीय सहित २०० प्रकृतिओ उदयमां होय । ४. अविरतगुणस्थानमां-मिश्रमोहनीयरहिन समकितमोहनीय अने चार आनुपूर्वी सहित १०४ प्रकृतिओ उदयमां होय । ५. देशविरतगुणस्थानमां-अप्रत्याख्यानीय क्रोध, मान, माया अने लोभ ४, मनुष्यानुपूर्वी, तिर्यचानुपूर्वी, वैक्रियद्विकवैक्रियशरीर अने वैक्रिय अंगोपांग, देवत्रिक-देवगति, देवानु: पूर्वी अने देवायुष्य, नरकत्रिक-नरकगति, नरकानुपूर्वी अने नरकायुष्य, दौर्भाग्य अने अनादेयद्विक-अनादेय अने अपयश ए सत्तर विना ८७ प्रकृतिओ उदयमां होय । ६. प्रमत्तगुणस्थाने-तिर्यंचगति, तिर्यंचायुष्य, नीचगोत्र,

Loading...

Page Navigation
1 ... 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98