Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 71
________________ रञसंस्थान, उपघात सिवाय अगुरुलघु आदि सात-अगुरुलघु, पराघात, उच्छवास, आतपनाम, उद्योतनाम, तीर्थ करनाम भने निर्माणनाम, तिर्यंचायुष्य, वर्ण आदि चार, पंचेंद्रियजाति भने शुभविहायोगति ए ४२ पुण्यप्रकृतिओ छे. बाकीनी ७८ अने अशुभवर्णादि ४ एम ८२ पापप्रकतिमो छे. हवे अपरावर्तमान प्रकृतिने कहे छे१५८. उच्छ्वासपराघातजिननामध्रुवबन्धनवकचतुर्दृष्टिज्ञाना वरणविघ्नभयकुत्सामिथ्यात्वान्यपरावर्ताः। जे बोजी प्रकृतिनो बंध अथवा उदय निवारीने पोतानो बंध तथा उदय देखाडे ते परावर्तमान अने जे परनो बंध तथा उदय वार्या विना ज पोतानो बंध-उदय देखाडे ते अपरावर्तमान. तेमां अपरावर्तमान २९ प्रकृतिओ छे. ते आ प्रमाणे-उच्छ्वासनाम,पराघातनाम,जिन नाम, नामधुवबंधनवकवर्णचतुष्क, तैजसनाम, कार्मणनाम, अगुरुलघुनाम, निर्माण नाम अने उपघातनाम, दर्शनावरणीय ४, ज्ञानावरणीय ५, अंतराय ५, भयमोहनीय, दुगंछामोहनीय अने मिथ्यात्व ए २९ प्रकृतिओ अपरावर्तमान होय छे. बाकीनी प्रकृतिओ परावर्तमान जाणवी.

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