Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 76
________________ ૫૯ हवे उत्तरप्रकृतिनो उत्कृष्ट स्थितिबंध कहे छे१६९. कषाये विघ्नावरणासाते सूक्ष्मविकलत्रिके आद्य संस्थानसंहननमृदुलघुस्निग्धोष्णसुरभिसितमधुरसुभगम्युच्चसुरद्विकस्थिरषदकपुरुषरतिहास्ये चत्वा रिंशत् त्रिंशदष्टादश दश परा । १. कषाय १६ मां तथा २. अंतराय ५, आवरण-ज्ञानावरणीय ५ अने दर्शनावरणीय ९.असातावेदनीयमा तथा ३. सूक्ष्मत्रिकसूक्ष्म, अपर्याप्त अने साधारण, विकलत्रिक-बेइंद्रिय, तेइंद्रिय अने चउरिंद्रियमां तथा ४. आधसंस्थान,आधसंघयण,मृदु, लघु, स्निग्ध, उष्णस्पर्श, सुरभिगध, सित-श्वतधर्ण, मधुररस; शुभ विहायोगति, उच्चगोत्र, देवद्विक, स्थिरषटक-स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय अने यश नाम, पुरुषवेद, रतिमोहनीय अने हास्यमोहनीयने विषे अनुक्रमे ४०, ३०, १८ अने १० कोडाकोडी सागरोपमनी उत्कृष्ट स्थिति होय. १७०. शेषाकारसंहनने वर्णरसयोश्च द्विद्वयवृद्धिः । बाकीना संस्थान अने संघयणने विष तथा वर्ण अने रसमां बब्बेनी अने अढी अढी कोडाकोडी सागरोपभनी वृद्धि जाणवी ते आ प्रमाणे १. समचतुरस्रसंस्थान अने वज्रक्रमनाराच संघयणनी १० कोडाकोडी सागरोपम होय. बब्बे कोडाकोडी सागरोपम वधारता

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