Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 91
________________ ૭૪ पोतानी मूलप्रकृतिने जे भाग प्राप्त थयो छे तेनो अनंतमो भाग सर्वघाति प्रकृतिने मले छे. हवे गुणश्रेणि कहे छे -२२५. सुदृग्देशसर्वविरतानन्तदर्शक्षपकोपशमकोपशान्त क्षपकक्षीणमोहसयोगायोगा असङ्ख्यगुणनिजराः । सम्यग्दृष्टि, देशविरत, सर्वविरत, अनंतवियोजक, दर्शनमोक्षपक, चारित्रमोहोपशमक, उपशांतमोह, क्षपक, क्षीणमोह सयोगी अने अयोगी. आ जीवो अनुक्रमे असंख्यातगुण निर्जरावाला होय छे. हवे गुणस्थाननुं अंतर कहे छे२२६. गुणेष्वन्तर्मुहूर्त्तार्धपुद्गलौ पराऽपरमन्तरम् । गुणस्थानोमां जघन्य अंतर अंतर्मुहूर्त्त अने उत्कृष्ट अंतर अर्धपुद्गलपरावर्त्त. २२७. द्वितीये पल्या सङख्यांशो लघु । सास्वादनमां जघन्य अंतर पल्योपमनो असंख्यातमो भाग होय. २२८. मिध्यात्वे षट्षष्टिद्वयं गुरु ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98