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पोतानी मूलप्रकृतिने जे भाग प्राप्त थयो छे तेनो अनंतमो भाग सर्वघाति प्रकृतिने मले छे.
हवे गुणश्रेणि कहे छे
-२२५. सुदृग्देशसर्वविरतानन्तदर्शक्षपकोपशमकोपशान्त
क्षपकक्षीणमोहसयोगायोगा असङ्ख्यगुणनिजराः ।
सम्यग्दृष्टि, देशविरत, सर्वविरत, अनंतवियोजक, दर्शनमोक्षपक, चारित्रमोहोपशमक, उपशांतमोह, क्षपक, क्षीणमोह सयोगी अने अयोगी. आ जीवो अनुक्रमे असंख्यातगुण निर्जरावाला होय छे.
हवे गुणस्थाननुं अंतर कहे छे२२६. गुणेष्वन्तर्मुहूर्त्तार्धपुद्गलौ पराऽपरमन्तरम् ।
गुणस्थानोमां जघन्य अंतर अंतर्मुहूर्त्त अने उत्कृष्ट अंतर अर्धपुद्गलपरावर्त्त.
२२७. द्वितीये पल्या सङख्यांशो लघु ।
सास्वादनमां जघन्य अंतर पल्योपमनो असंख्यातमो भाग होय.
२२८. मिध्यात्वे षट्षष्टिद्वयं गुरु ।