Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 88
________________ ७१ आयुषोऽसङ्ख्यघ्नाः। एकेकस्थितिबंधमां असंख्यलोकाकाशना प्रदेश प्रमाण अध्यवसायो होय छे ते आयुष्यवर्जी ने सात कर्ममां दरेकस्थितिमा विशेषाधिक होय अने आयुष्यमां असख्यातगुण जाणवा. हवे अनुभागबंध कहे छे२१५. सक्लेशविशुद्धिभ्यां तीव्रमन्दरसा अशुभाः । अशुभ प्रकृतिनो तीवरस संक्लेशवडे अने मंदरस विशुद्धि पडे बंधाय छे. २२६. शुभा विपर्ययात् । शुभ प्रकृतिनो तीव्ररस विशुद्धि वडे अने मंदरस संक्लेश चडे बंधाय छे. २१७. शिलामहीरजोजलरेखासमैः कषायैः सङ्क्लेशैश्चतुः स्थानादिरविघ्नदेशघात्यावरणपुंसज्वलने द्विस्था नादिदेश सर्व. चैक त्रिचतुः । पर्वत, पृथ्वी, धूल अने पाणीमां रेखासमान कषाय वडे अशुभ प्रकृतिनो अनुक्रमे चउठाणिओ त्रण ठाणिोबे ठाणि प्रो अने एक ठाणि ओ रस बंधाय, शुभ प्रकृतिनो विपरीत पणे-धूल, पृथ्वो अने पर्वतमां रेखा समान चउठाणिओ, त्रण ठाणिओ

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