Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 66
________________ ૪૯ अने जे जे द्वीप - समुद्रमां नांख्या हता ते पण आमां उमेरवा, हवे ए राशि एकरूप ऊण करवाधी उत्कृष्ट संख्यातु आवे, अने ए एकरूप उमेरतां जघन्य परीत्त असंख्यातु आवे । १४५. अभ्यासे युक्तम् । जघन्य परीत्त असंख्यातने अभ्यास करतां जघन्य युक्त असंख्यातु आवे । १४६. पुनः पुनः स्वयुतासङ्ख्यपरीत्तयुक्तस्वयुतानन्तम् । जघन्य युक्त असंख्यातनो अभ्यास करतां जघन्य असंख्यातासंख्यात आवे, वली जघन्य असंख्यात असंख्यातनो अभ्यास करतां जघन्य परीत अनंत आवे, वली जघन्य परीत्त अनंतनो अभ्यास करतां जघन्य युक्त अनंत आवे, बली जघन्य युक्त अनंतनो अभ्यास करतां जघन्य अनंतानंत आवे । १४७. सर्वत्र रूपोनं पश्चिमं परम् । बधामां एकरूप ओछें करीए त्यारे पाछलनुं उत्कृष्ट थाय १४८. मध्ये मध्यमम् । वचमां मध्यम जाणवुं । १४९. नानन्तानन्तमुत्कृष्टम् । उत्कृष्ट अनंतानंत नथी । १५०. केचित्तु युक्तेऽसङ्ख्ये वर्गिते सप्तमं, त्रिवर्गिते दशक्षेपे लोकाकाशधर्माधर्मे कजीव प्रदेश स्थितिबन्धा ४

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