Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 61
________________ ४४ सत्ता । अंत्य-अयोगि केवलिगुणस्थानना छेल्ला समयमां देवद्विक-देवगति अने देवानुपूर्वी,गम विहायोगति-द्विक-शुभविहा. योगति अने अशुभविहायोगति, गंधद्विक-सुरभिगंध अने दुरभिगंध,स्पर्शाष्टक-गुरु,लघु,मृदु,कर्कश,शीत,उष्ण,स्निग्ध अने रूक्ष, वर्णनाम ५-कृष्ण, लीलो, लाल, पीलो अने शुक्ल, रसनाम ५तीखो, कडवो, तुरो, खारो अने मीठो, शरीर ५, बंधन ५, संघातन ५, निर्माणनाम, संघयण ६, संस्थान ६, अस्थिरषद्कअस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय अने अपयश, अगुरुलघुचतुष्क-अगुरुलघु, उपघान, पराघात अने उच्छ्वास, अपर्याप्तनाम, प्रत्येकत्रिक-प्रत्येक, स्थिर अने शुभ, उपांगत्रिक औदारिक उपांग; वैक्रिय उपांग अने आहारक उपांग, सुस्वरनाम, नीचगोत्र अने अन्यतर-सातावेदनीय अने असातावेदनीय ए बेमांथी एक, एवं ७२ प्रकृतिरहित १३ नी सत्ता होय । १३०. अन्त्यान्त्ये छेदः । अयोगिकेवलिगुणस्थानना छेल्ला समये १३ प्रकृतिनो छेद थाय छ । सत्ताधिकार समाप्त (भावतभेदाः) भावनुं वर्णन१३१. उपशमक्षयमिश्रोदयपरिणामसंयोगजा द्विनवाष्टा दशैकविंशतित्रिषड्विंशतिभेदाः ।

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