Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 59
________________ ४२ प त्रण प्रकृतिओ करीने न्यून जाणवी. कारण के-ए सात गुणस्थानमां ए त्रण प्रकृतिओनी उदीरणा न होय । उदीरणाधिकार समाप्त सत्ता १२६. सत्ता आ उपशान्तात् सर्वासाम् । सत्ता एटले कर्मोनी विद्यमानता । मिथ्यादृष्टि गुणस्थानथी मांडी उपशांतमोह गुणस्थान सुधी सर्व प्रकृतिओनी ( १४८) सत्ता होय छे । १२७. विजिनौ द्वितीयतृतीयौ । प्रम गुणस्थाने १४८ नी सत्ता. बीजे अने त्रीजे गुणस्थाने जिननाम विना १४७ नी सत्ता होय छे । १२८. अदर्शनत्रिकानन्ताऽनरायुष्कोऽनिवृत्तिः क्षपको 5 यतात् । मांडी क्षायिकसमकितीने अयत - अविरत गुणस्थानधी अनिवृत्ति- बादर गुणस्थानना प्रथम भाग सुधी दर्शनत्रिकसम्यक्त्वमोहनीय, मिश्रमोहनीय अने मिथ्यात्वमोहनीय, अनंतानुबंधिकषाय ४, अने अनर - मनुष्य सिवाय त्रण आयुष्य १० रहित १३८ नी सत्ता होय । १२९. अस्थावरतिर्यग्नरकातपद्विकस्त्यानगृद्धित्रिकैक विकला क्षसाधारणद्वितीयो ऽप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानावरणतृतीयः

Loading...

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98