Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 30
________________ ૧૩ संज्ञि पर्याप्तामां सात, आठ, छ अने एक कर्मनो बंध होय, तथा सत्ता अने उदय, सात आठ अने चार कर्मनो होय, तथा उदीरणा, सात आठ पांच अने बे कर्मनी होय छे । हवे मार्गणास्थानो कहे छे ४९. गति - जाति - काय - योग - वेद- कषाय - ज्ञान - संयमदर्शन - लेश्या-भव्य- सम्यक्त्व - सञ्झ्याSS-हारमार्गणाश्चतुः - पञ्च - षट् - त्रि - त्रि- चतुरष्ट - सप्त - चतुः - षड् द्वि-षड्-द्वि-द्वि मेदाः । गति, जाति, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्य, सम्यक्त्व, संज्ञि अने आहार मार्गणाना अनुक्रमे चार, पांच, छ, त्रण, त्रण, चार, आठ, सात, चार, छ, बे, छ, बे अने ये भेद छे. ते आ प्रमाणे गति - ४ - देवगति, मनुष्यगति, तिर्यचगति अने नरकगति । जाति -५ - पकेंद्रिय, बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चउरिंद्रिय अने पंचेंद्रियजाति । काय - ६ - पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय अने त्रसकाय । योग - ३ - मनोयोग, वचनयोग अने काययोग | वेद - ३ - पुरुषवेद, स्त्रीवेद अने नपुंसकवेद । कषाय- ४ - क्रोधकषाय, मानकषाय, लोभकषाय । मायाकषाय अने

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