Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala
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१०९. मिथ्यात्वे जिनपञ्चकम् ।
मिथ्यात्वगुणस्थानमां जिननाम, देवद्विक अने वैक्रियद्विक ए पांच विना १०९ बांधे । निषेधनी अनुवृत्ति चाले छे । ११०. सास्वादने ऽतिर्यग्नरायुःसूक्ष्मत्रयोदशकम् ।
सास्वादन गुणस्थानमां तिर्य चायुष्य, मनुष्यायुष्य, सूक्ष्मत्रयोदश- सूक्ष्मत्रिक, विकलत्रिक, एकेंद्रिय, स्थावर, आतप, नपुंसकवेद, मिथ्यात्व, हुंड अने छेबट्टु ए पंदर प्रकृति बिना ९४ बांधे ।
१११. अननन्तचतुर्विंशतिरयते जिनपश्चकम् |
अविरत गुणस्थानमां अनंतानुबंधिचतुष्क, मध्यमसंस्थान ४ मध्यम संघयण ४, अशुभ विहायोगति, नीचगोत्र, स्त्रीवेद, दुर्भगत्रिक, थीणद्धित्रिक, उद्योत अने तिर्य चद्विक पचोवीश प्रकृति विना अने जिनपंचक- जिननाम, देवद्विक अने वैक्रियद्विक ए पांच प्रकृति सहित ७५ बांधे ।
११२. सातं सयोगिनि ।
सयोगि गुणस्थाने एक सातावेदनीय ज बांधे |
११३. न तिर्यङ्नरायुषी कार्मणे ।
कार्मणकाययोगमां तिर्यचायुष्य अने मनुष्यायुष्य सिवाय औदारिकमिrनी जेम बंध जाणवो ।
११४. वैक्रियमिश्र ।
(वैक्रियकाययोगमां देवतानी जेम बंध जाणवो) वैक्रिय

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