Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ शान-८-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, केवलज्ञान, मत्यशान, श्रुताशान भने विभंग शानः। संयम-७-सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसंपराय, यथाख्यात, देशविरति अने अविरति। दर्शन-४-चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन अने ___ केवलदर्शन । लेश्या-६-कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, तेजो लेश्या, पद्मलेश्या अने शुक्ललेश्या । भव्य-२-भव्य अने अभव्य । सम्यक्त्व-६-औपशमिक, क्षायोपशमिक, क्षायिक, सास्वा दन, मिश्र अने मिथ्यात्व । संक्षि-२-संशी अने असंझी । आहार-२-आहार अने अणाहार । हवे मार्गणाने विषे जीवस्थान कहे छे५०. सुरनरकविभङ्गमति श्रुतावधिज्ञानदर्शनायिकौपशमि कक्षायोपशमिकसज्ञिपमशुक्लासु पर्याप्ताऽपर्याप्तसञ्जिनौं । देवगति, नरकगति, विभंगज्ञान, मतिज्ञान, भुतज्ञान, अवधिज्ञान, अवधिदर्शन; क्षायिक, औपशमिक अने क्षायोपशमिकसम्यक्त्व, संक्षि, पमलेश्या भने शुक्ललेश्या ए तेर

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98