Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 27
________________ पर्याप्त सूक्ष्म एलियने विवे एकब औदारिककाययोग होय छ। बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चउरिद्रिय अने असंक्षिपंचेंद्रिय ए चार पर्याप्ताने विषे अंत्य-चोथी भाषा सहित औदारिक एटले ये योग होय छ । बादर एकेंद्रिय पर्याप्ताने विषे वैक्रिय अने वैकियमिश्र संहिता मोहारिक योग होय एटले औदारिक, वैकिय भने वैक्रियमिश्र एम प्रण योग होय छ । । योगाधिकार समाप्त । हवे उपयोगना भेद कहे छे३८. झानाजानदर्शनानि पञ्च-त्रि-चतुषियोगाः । जीवनो बोधरूप व्यापार तेने उपयोग कहे छे, तेना बार भेद छे पच हान-भतिबार, भुतान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान अने केवलज्ञान. प्रण अज्ञान-मत्यवान, शुलाशाल मने विज्ञान भने चार दर्शन-चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन अने केवलदर्शन. हवे जीवस्थानोमां उपयोग कहे - . ३९. पर्याप्तसम्झिनि द्वादश ।

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