Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala
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आ प्रमाणे नामकर्मना १०३ मेदो छे.
हवे गोत्रकर्मनी मेद देखाडे छे२३. उच्चैनी चैगोत्रे । उच्च अने नीच ए बे गोत्रकर्मना भेद छे.
हवे अंतरायकर्मना मेद बतावे छे२४. दान-लाभ-भोगो-पभोग-वीर्याणाम् (अन्तरायाः)।
दान, लाभ, भोग, उपभोग अने वीर्य ए पांचना अंतरायो एटले दानांतराय, लाभांतराय, भोगांतराय, उपभोगांतराय अने वीर्यांतराय ए पांच अंतरायकर्मना मेदो छे. आ कर्म दानदेवामां लाभ-भोग आदिमां विघ्न करे छे ! ___बधी कर्मप्रकृतिओनुं स्वरूप कर्मग्रंथनी टीकाथी जाणवू ।
हवे १४ गुणस्थानको कहे छे२५. मिथ्यात्व-सास्वादन-मिश्रा-ऽविरत-देशविरत-प्रमत्ता
ऽप्रमत्तसंयत-निवृत्त्य-निवृत्तिबादर-सूक्ष्मसम्परायोपशान्त-क्षीणमोह-सयोग्य-योगिजिना गुणाः । मिथ्यात्व, सास्वादन, मिश्र, अविरलसम्यग्दृष्टि, देशविरत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत, निवृत्तिबादरसंपराय, अनिवृत्तिवादरसंपराय, सूक्ष्मसंपराय, उपशांतमोह, क्षीणमोह, सयोगिकेवली (जिन) अने अयोगीकेवली ए चउद गुणस्थान छे।

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