Book Title: Kappasuttam Vhas Vises Chunni Sahiyam Part 03
Author(s): Bhadrabahuswami, Sanghdasgani Kshamashraman, 
Publisher: Shubhabhilasha Trust

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Page 221
________________ १०६४ भासगाहाणं अकारादिकमो छण्हं जीवनिकायाणं छन्नवहणट्ठ मरणे छप्पइय-पणगरक्खा छब्भागकए हत्थे छम्मासे आयरियो छम्मासे आयरियो छम्मासे पडियरिउं छल्लहुए ठाइ थेरी छल्लहुगा उणियत्ते छव्विहकप्पस्स ठितिं छव्वीहीओ गामं छादेति अणुक्कुयिते छाया जहा छायवतो णिबद्धा छारेण लंछिताई छिंडीइ पच्चवातो छिंडीए अवंगुयाए छिंदंतस्स अणुमई छिक्कस्स व खइयस्स व छिण्णावात किलंते छिन्नमछिन्ना काले छिन्नममत्तो कप्पति छिन्नम्मि माउगते छिन्नाइबाहिराणं छिन्नेण अछिन्नेण व छिहलिं तु अणिच्छंते छुभणं जले थलातो छेदणे भेयणे चेव छेदो छग्गुरु छल्लहु छेदो न होइ कम्हा छेदो मूलं च तहा छेदो मूलं च तहा ६४१८ २३८१ ३६६७ ४०४४ १९९८ २००१ ६२१५ २४१० ६०७७ ६४८६ १४०० ४०८८ ३६२८ ३३१२ २६५३ २६५५ १७८९ १३३७ ५६११ १६८३ ३६४३ ३९५६ २३१५ ३०५२ ५१७९ ५६२३ ४८९९ २९१४ ४९७० २५२२ २५३९ छेल्लिय मुहवाइत्ते छोढूण दवं पिज्जइ छोढूणऽणाहमडयं जच्चेव य जिणकप्पे जं अज्जियं चरित्तं जं अज्जियं चरित्तं जं अज्जियं समीखल्लएहिँ जं अज्जियं समीरवल्लएहिँ जं अण्णाणी कम्म जं आवणमज्झम्मी जं आहडं होइ परस्स हत्थे जं इच्छसि अप्पणतो जं इत्थं तुह रोयइ जं एत्थ अम्हे सव्वं जं कट्ठकम्ममाइसु जंकल्ले कायव्वं जं किंचि होइ वत्थं जं केणई इच्छइ पज्जवेण जं चिज्जए उ कम्म जं चिय पए णिसिद्ध जं जंतु अनुन्नायं जं जह सुत्ते भणितं जं जीवजुयं भरणं जं जो उ समावण्णो जंतु न लब्भइ छेत्तुं जं तेहिँ अभिग्गहियं जं दव्वं घणमसिणं जं दिसि विगड्ढितो खलु जं देउलादी उ णिवेसणस्सा जं पि न वच्चंति दिसिं जं पुण खुहापसमणे ६३२२ ३४१९ ५२२१ १४३९ २७१५ ५७४७ ५७४६ २७१४ ११७० २२९८ ३६२६ ४५८४ ६०४५ १९४० २४५२ ४६७४ २८३५ ३६२९ १६४६ ३३२८ १४९८ ३३१५ १७६३ ६४१९ ५९७० ५२३१ ५५०३ ५५५५ ३५०५ १५१३ ६०००

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