Book Title: Kappasuttam Vhas Vises Chunni Sahiyam Part 03
Author(s): Bhadrabahuswami, Sanghdasgani Kshamashraman,
Publisher: Shubhabhilasha Trust
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१०८०
दुविन्नम्मी
दुविहो जाणमजाणी दुविहो य होइ अग्गी
हो जो
वह यहोव
दुविहो य होइ पंथो
दुविहो वसहीदोसो
दुव्विदुणा
दुस्संचर बहुपाणादि काउ दुस्सन्नप्पो तिविधो
दुहतो थोवं एक्क्कण
मट्ठहुओ दूरम्मि दिट्ठे हुओ
दूरागतमुट्ठे
तस्स तिगिच्छी
मज्झ परिजणो
व अन्नगामो
दूरेण संजईओ
दसियवेदो दूसित देउलियअणुण्णवणा देवा हु णे पसन्ना देवाणुवित्ति भत्त देविंदराय उग्गह
देवे य इत्थवं
देवेहिँ भेसिओ वि य
देसकडा मज्झपदा
देसकहापरिकहणे देसकहापरिकहणे
६३९४
३५५०
३६३८
५१७६
२१४५
३४३३
३४६१
३०५१
४९१३
४१३९
२७४८
५२१२
५९१०
५८२४
२१७४
२१९८
४४३८
११५१
५७०७
२९२८
२१६३
५१५०
१४९६
१९८१
१२१०
४७८४
५६८८
१३३९
१७६२
२६९७
५७३१
भासगाहाणं अकारादिकमो
देसग्गहणे वीएहि
देसिय राइय पक्खिय
देसिय वाणिय लोभा
देसिल्लगं वन्नजुयं मणुण्णं
देसी गिलाण जावोग्गहो
देसी गिलाण जावोग्गहो
देसी भासाइ कयं
देसी भासा क
देसी भासाय कयं
देह हिओ गणणेक्को
देहबलं खलु विरियं
देहस्स तु दोबल्लं
देहेण वा विरूवो
देहवहीण डाहो
देहोवहीतेणगसावतेहिं दो जोयणाइँ गंतुं
तरुण
दो दक्खिणावातू
दो मासे सणा
दो साभरया दीविच्चगा
दोच्चं पि उग्गहो त्ति य
दोच्चेण आगतो खंदएण
दोण्णि य दिवड्ढखेत्ते
दोणि वि अनालबद्धा उ
दोहिं वि वयंति पंथं
दोह वि कतरो गुरुओ
दोह वि चित्त गमणं
दोण्हं उवरि वसंती
दोहं उवरिं वसती
गरं न
दोन्नि अणुन्नायाओ
३३२२
४४६७
२८२६
३९९८
३९१०
३९११
३४०४
३४३१
३४५९
२३७७
३९४८
५६०४
६१५५
३४७४
३२५८
५६५७
२०८७
३८९२
५४४३
३८९१
२८११
३२७२
५५२७
५२४७
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५८०८
३०८७
२१०५
२०४६
४६१५
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