Book Title: Kappasuttam Vhas Vises Chunni Sahiyam Part 03
Author(s): Bhadrabahuswami, Sanghdasgani Kshamashraman, 
Publisher: Shubhabhilasha Trust

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Page 243
________________ १०८६ पच्छाकडे य सन्नी पच्छित्त पण जहणं पच्छित्तं इत्तिरिओ पच्छित्तपरूवणया पच्छित्तमणंतरियं पच्छित्तमेव पगतं पज्जायजाई सुततो य वुड्ढा पज्जोए रहे पज्जोसवणाकप्पो पट्ट सुन्ने पट्टऽड्ढोरुय चलणी वि होइ एक्क पडणं अवंगुतम्मि पडिकंते पुण मूलं डिट्ठ देस कारण गया पडिगमणमन्नतित्थिग पडिचरिहामि गिलाणं पडिजग्गंति गिलाणं पडजग्गिया य खिप्पं पडिणीय णिवे पडिणीय तेण सावय पडिणीय मेच्छ मालव पडितं पम्हुट्टं वा पडिपहनियत्तमाणम्मि पडिपुच्छं वायणं चेव पडिपुण्णा पडुकारा पडिबद्धा इतरे वि य बिद्धे को दोस पडिमाए झामिया पडिमा पाउता वा पडिमा झामण ओरभण १९२६ ४०४३ ६२७९ ५२६८ ५०५८ ५५९४ ४४३६ ४२२० ६४३० ३६६२ ४११९ ४०८५ ४०७१ ५७७२ २८८१ २६०३ १८७८ ४३०४ ३७८५ ४५६३ २३५८ ३७५६ ३७२५ २३८९ ६४६९ ४१९६ १४४० २०१४ ३४६५ ६३६८ ३४६९ भासगाहाणं अकारादिकमो पडिरूववयत्थाया पडिलाभणऽट्ठमम्मिं पडिलाभणा उ सड्ढी पडिलाभणा बहुविहा पडिलेह दियतुअट्टण पडिलेह पोरुसीओ पडिलेहंत च्चिय वेंटियाउ पडिलेहण निक्खमणे पडिलेहण संथारग डिहा उका पडिलेहणा दिसा णंतए पडिलेहा पलिमंथो पडिलेहियं च खेत्तं पडिलेहियं च खेत्तं पडिलेहियं च खेत्तं पडिलेहियं च खेत्तं पडिलेहोभयमंडलि पडवक्खेणं जोगो पडिवज्जमाण भइया पडिवज्जमाणगा वा पडिवज्जमाणभइयो पडिवत्तिकुसल अज्जा पडिवन्ना जिणिंदस्स पडिवेसिगएक्कघरे पडिसामियं तु अच्छइ पडिसिद्धं खलु कसिणं पडिसिद्धविवक्खेसुं पडिसेवंतस्स तहिं पडिसेवणअणवट्ठो पडिसेवणारंची डिसेवणा एवं ५७०८ ४९३४ ४९३७ ५२७१ ५४५४ १९०३ १५४४ १६५८ १५७४ १६६० ५५०० ३८७७ १५०५ १५११ २०६९ ३१७८ २३७९ ३८०२ १६४७ १४४४ १४३७ ३२३७ ६४५१ ४९१६ ४३५९ ३८७९ २३२६ ४९५८ ५०६२ ४९८५ २४८२

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