Book Title: Kappasuttam Vhas Vises Chunni Sahiyam Part 03
Author(s): Bhadrabahuswami, Sanghdasgani Kshamashraman,
Publisher: Shubhabhilasha Trust
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बीयं परिसि
दोन्नि उपमज्जणाओ
दोन्नि विदा गम
दोन्निवि समा गया
दोन्नि वि ससंजईया
दोन्निव सहू भी दोरेहि व वज्झेहि व
हं
दोसा जेण निरुब्भंति
दोसा त जे होंति तवस्सिणीणं
दोसा वा के तस्सा ?
दोसाऽसति मज्झिमगा दोसु वि अलद्धि कण्णे
दोसु वि अव्वोच्छिण्णे
दोसे चेव विमग्गह
दोसेहिं एत्तिएहिं
दोहि वि गुरुगा एते दोहि वि पक्खेहिँ दोहि वि रहिय सकामं
दोहिँ वि अरहिय रहिए
धणियसरिसं तु कम्मं
धम्मं कहेइ जस्स उ धम्मका चुणेहि व
धम्मकहा पाढिज्जति
धम्मकहा महिड्ढीए
धम्मकहासुणणाए धम्मस्स मूलं विनयं वयंति
धम्मेण उ पडिवज्जइ
धम्मोयओ रूवं
धारणया उ अभोगो
धारणया उ अभोगो
धारोदए महासलिलजले
२७४६
२०१७
३०८६
२२१८
३७६८
३८६९
६४२७
३३३१
३८२०
३५२०
६४३३
२६१३
३५६८
३१७५
३१७३
४४२४
२४३८
२२४९
२२५४
२६९१
४५९६
३०२१
५१८२
५६९१
२२६४
४४४१
१४२२
१२०१
२३६७
२३७२
३४२२
धिइ बलजुत्तो वि मुणी
धिइ संघयणादीणं
धिइधणियबद्धकच्छो
धिइबलपुरस्सराओ धितिबलिया तवसूरा
दिक्कतोय हाक्कतो य
धीरपुरिसपन्नत्तो
धुवणाऽधुवणे दोसा
धुवाधुव
धूमादि बाहिर
धोयस्स व रत्तस्स व
न करेति आगमं ते
न केवलं जा उ विहम्मिआ सती
न चित्तकम्मस्स विसेसमंधो
न छिदओ होज्ज सतिं तु दोसो
नठविज्जई वसुं
न तस्स वत्थाइसु कोइ संगो
न मिलति लिंगकज्जे
न य अप्पगासगत्तं
न य बंधहेउविगलत्तणेण
न लभति खरेहिं निद्दं
न वओ इत्थ पमाणं
न वि एयं तं वत्थं
न वि कुप्पसि न पसीयसि
न वि कोइ वि कंचि पुच्छति
न वि जाणामो निमित्तं
न वि ते कहंति अमुगो
नविय समत्थो सव्वो
न विलब्भई पवेसो
न वि वच्छएसु सज्जंति
न विवित्ता जत्थ मुणी
१०८१
३७८३
४४९८
१३५६
१३५७
६४८२
४१२६
१४४८
६०२७
४०१२
५२१५
२९७८
१४२०
४११७
३२५३
३९२९
५१३८
३९९६
१८१३
१२४९
६२२५
३९१५
२१००
४१७४
४४८७
४८२६
२८०५
५९९४
३७८७
३१९८
२१२०
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