Book Title: Kanjiswami Abhinandan Granth
Author(s): Fulchandra Jain Shastri, Himmatlal Jethalal Shah, Khimchand Jethalal Shah, Harilal Jain
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 159
________________ in monk ey Sumitramaniram होंगे। इसके सिवा निःश्रेयस प्राप्त करनेका अन्य कोई मार्ग नहीं है। इससे सिद्ध है कि एकमात्र निश्चय मोक्षमार्ग ही सच्चा मोक्षमार्ग है, व्यवहार मोक्षमार्ग वह सच्चा मोक्षमार्ग नहीं। भगवान वीतराग अरिहन्त भट्टारकका उपदेश भी यही है । उक्त कथनकी पुष्टिमें आगे इन प्रमाणोंका भी पर्यालोचन कीजिए (२) आचार्य पद्मनन्दिने पद्मनन्दिपंचविंशतिकाके एकत्वसप्तति नामक अधिकारमें इस विषयका सुन्दर ढंगसे खुलासा किया है। वे उक्त अधिकारके इलोक ३२में कहते हैं कि निश्चयसे जो यह एकत्व है, अद्वैत है वह परम अमृत है अर्थात मोक्षस्वरूप है। किन्तु द्वैतको उपजानेवाला जो यह व्यवहार मोक्षमार्ग है वह संसार है। (३) इसी ग्रन्थमें धर्मोपदेश नामक प्रथम अधिकार (इलोक ८१)में वे कहते हैं कि सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रकी एकता बन्धका विध्वंस करनेवाली है और बाह्य अर्थरूप सम्यग्दर्शन ज्ञान-चारित्र शुद्धात्मतत्त्वकी उपलब्धिसे बाह्य हैं । वे बाह्य पदार्थों को विषय करते हैं, इसलिए उनसे शुभाशुभ कर्मों का बन्ध होता है जो संसार परिभ्रमणका कारण है। (४) प्रवचनसार गाथा १९९में और उसकी टीकामें भी इसका बहुत ही उत्तम प्रकारसे स्पष्टीकरण किया गया है । वहाँ बतलाया है कि सभी सामान्य चरमशरीरी, तीर्थकर और अचरमशरीरी मुमुक्ष इसी तथोत शुद्धात्मतत्त्वप्रवृत्तिलक्षण विधिसे प्रवर्तमान मोक्षमार्गको प्राप्त करके सिद्ध हुए, किसी दूसरी विधिसे सिद्ध हुए हों ऐसा नहीं है। इससे निश्चित होता है कि केवल यह एक ही मोक्षमार्ग है, दूसरा नहीं। अधिक विस्तारसे पूरा पड़े। उस शुद्धात्मतत्त्वमें प्रवर्ते हुए सिद्धोंको तथा उस शुद्धात्मतत्त्वप्रवृत्तिरूप मोक्षमार्गको, जिसमें भाव्य-भावकरूप विभाग आतंगत हो गया है, नोआगमभावरूप नमस्कार हो । (५) श्री नियमसार गाथा १४८में और उसकी टीकामें यही बात सिद्ध की गई है। वहाँ बतलाया है कि ऋषभदेवसे लेकर महावीर पर्यन्त जितने भी परमेश्वरदेव हुए हैं वे सब उक्त प्रकारसे म्वात्मसम्बन्धी उत्कृष्टरूप शुद्ध निश्चय योगभक्तिको करके ही सिद्ध हुए हैं। (६) परमार्थ प्रतिक्रमण अधिकारका प्रारम्भ करते हुए श्री पद्मप्रभमलधारिदेवने और भी स्पष्ट शब्दोंमें खुलासा कर दिया है। वे लिखते हैं कि शुद्ध निश्चयनयस्वरूप परम चारित्र व्यवहार चारित्र और उसके फलका प्रतिपक्षी है। इस प्रकार पूर्वोक्त इन सब प्रमाणोंको ध्यानमें रखकर विचार करनेसे विदित होता है कि स्वयं आत्मस्वरूप होनेके कारण एकमात्र निश्चय मोक्षमार्ग ही सच्चा मोक्षमार्ग है, व्यवहार मोक्षमार्गको जो मोक्षमार्ग कहने में आता है वह परमार्थ कथन नहीं है, उपचारसे ही ऐसा कहा जाता है। उसी प्रकार निश्चय रत्नत्रयरूप परिणत आत्मामें व्रत, तप आदिका जो विकल्प होता है वह भी उपचारसे मोक्षमार्ग कहा जाता है। - - - RERNAMANAND HARACTORRESSES EN SHIREEK SHENAMESSAGE immukta

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