Book Title: Kanjiswami Abhinandan Granth
Author(s): Fulchandra Jain Shastri, Himmatlal Jethalal Shah, Khimchand Jethalal Shah, Harilal Jain
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 181
________________ ANANAMESH OMEDExu हिन्दीके आध्यात्मिक जैन कवि श्री डा. कस्तूरचंदजी काशलीवाल शास्त्री, एम. ए., पी. एच. डी., जयपुर हिन्दी भाषामें आध्यात्मिक साहित्यके लेखनका खूब प्रचार रहा। १० वीं शताब्दीसे लेकर व ५९ वीं शताब्दी तक पचासों सन्त एवं कवि हुए जिन्होंने आत्मा, परमात्मा, जगत् एवं उसकी स्थितिके विषय में अपार साहित्य लिखा और भव्य प्राणियोंको सन्मार्ग पर लगाने का पूरा प्रयास किया। उन्होंने पहिले ज्ञानियोंके मार्गका अनुसरण कर आत्मचिंतन एवं मनन किया और फिर उन अनुभूतियोंको साहित्यिक भाषामें निबद्ध करके उसे अमर बना दिया। उनमें संकीर्णता, कट्टरता तथा अन्य धर्मों के प्रति विद्वेषकी जरा भी भावना नहीं थी। वस्तु स्वरूपका वर्णन उनका प्रमुख उदेश्य रहा है। वे उदारचेता थे तथा अध्यात्म साहित्यका पठन-पाठन तथा लेखन उनकी प्रतिदिनकी ग्वुर क थी, इसलिये तविषयक रचनाऐं निबद्ध करना उनक स्वभावसा बन गया था। वे आत्मा एवं उसके अन्य गुणों का कहीं कहीं रूपक काव्योंमें वर्णन करते हैं और वह वर्णन इतना अनूठा एवं हृदयस्पर्शी है कि जिसका कुछ वर्णन नहीं। किया जा सकता। प्रस्तुत लेखमें हम ऐसे ही कुछ प्रसिद्ध कवियों एवं विद्वानोंका परिचय दनेका प्रयास कर रहे हैं जिन्होंने अपनी अनूठी रचनाओंसे हिन्दीके आध्यात्मिक साहित्यके मान एवं प्रतिष्ठामें अभिवृद्धि की है। १) छोहल ये ५६ वी शताब्दीके कवि थे। राजस्थानी विद्वान् थे और अपने साहित्य जगतमें ही मस्त रहा करते थे । आत्मचिंतन एवं मनन ही उनका प्रमुख उद्देश्य था । कविता करना एवं फिर उसे जनताको सनाना उन्हें प्रिय था। अबतक उपलब्ध तथ्योंके आधार पर मालूम होता है कि ये अग्रवाल जैन थे और उनके पिताका नाम नाथू था। इसके अतिरिक्त कविका अन्य कोई परिचय नहीं मिलता। छोहल कविने यद्यपि अधिक रचनाएं नहीं की होंगी, लेकिन जो भी लिखा उसे समाजमें अत्यधिक आदर प्राप्त था। कविका पसहेली गीत राजस्थानके अधिकांश शास्त्रभंडारों में मिलता है जो उसकी लोकप्रियताका परिचायक है । यह संवत् १५७५ फाल्गुण शुक्ल पूर्णिमाके दिनकी रचना है। रचना अच्छी है। उसकी भाषा एवं शैलीकी आचार्य रामचन्द्र शुक्ल एवं डा. रामकुमार वर्माने भी प्रशंसा की है। कविकी अन्य रचनाओंमें बावनी, पंथीगीत, उदरगीत, मनगीत एवं अन्य हैं। बावनी दूसरी बड़ी रचना है। इसे कविने संवत् १५८१ में समाप्त करके कविताके क्षेत्रमें यशोपार्जन किया था। कविकी कोई बड़ी रचना भी अवश्य मिलनी चाहिए और उसकी अभी खोज की जारही है। बावनीका एक पद यहाँ पाठकोंके अवलोकनार्थ दिया जा रहा है HTA saramra ) RahaEP-RS -SL HrudurNaviwww -

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