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CEREAANT
कानजीस्वामि-अभिनन्दन ग्रंथ
इनका साहित्यिक जीवन संवत् १८५४से प्रारम्भ होता है। इसी संवतमें सबसे प्रथम उन्होंने छहढालाकी रचना की। इसमें इन्होंने मानों गागरमें सागर भर दिया । यह कृति इनकी बहुत सुन्दर एवं इनकी काव्यशक्तिकी परिचायक है। अब तक इनकी १७ रचनाएँ प्राप्त हो चुकी हैं। उनका रचनाकाल मंबन १८५४से संवन् १८९५ तक रहा। तत्त्वार्थबोध (सं. १८७६) सतसई (१८९१) अधजनविलास (१८९२) तथा योगसार इनकी प्रमुख कृतियां हैं। सतसई इनकी उच्चकोटिकी सुभापित एवं आध्यात्मिक रचना है । बुधजनविलास में इनकी म्फुट रचनाओं एवं पदोंका संग्रह है। इनके पदोंका समाजमें अत्यधिक प्रचार रहा है। अबतक इनके २६५ पद प्राप्त होचुके हैं । अनेक पद ऊँची श्रेणीके हैं। उनसे पाठक कविकी काव्यत्वशक्तिका अनुमान लगा सकता है। वे आगमचिंतन वर्षों तक करते रहे और उस चिंतनाका परिणाम कहीं कहीं इनके पदोंमें स्पष्ट दिखलाई देता है । उन्होंने संभवतः आत्मदर्शनके लिये और उसके आधार पर इस पदकी रचना की
अब हम देखा आतमरामा । रूप फरस रस गंध न जामें ज्ञान दरश रस साना ॥१॥ भूख प्यास सुख दुःख नहिं जाके, नाहीं वन पुर ग्रामा । नहिं चाकर नहिं ठाकर भाई, नहीं तात नहिं मामा ||२|| भूल अनादि थकी बहु भटक्यो ले पुद्गलका जामा ।
बुधजन सत्गुरुकी संगतिसे मैं पाया मुझ ठामा ॥३॥ इनके पद एकसे एक बढ़कर हैं। संसारका यदि वास्तविक चित्र देखना हो, आत्मा, माया एवं मनके विषयमें यदि जानकारी प्राप्त करनी हो तो इनके पदोंको पढ़ जाइये, आपको आत्मतृप्त मिलेगी । कहीं कहीं इनके पदोंमें रूपक काव्यके भी दर्शन होते हैं। “निजपुरमें आज मची होली।' इनका एक ऐसा ही पद है जिसे पाठकोंके अवलोकनार्थ यहाँ दिया जारहा है
निजपुरमें आज मची होली । उमंगि चिदानंदजी इत आये, इत आई सुमती गोरी ||१|| लोक लाज कुलका णि गमाई, ज्ञान गुलाल भरी झोरी । समकित केसर रंग बनायो, चारित्रकी पिकि छोरी ॥२॥ गावत अजपा गान मनोहर, अनहद झरसौं वरस्योरी ।
देखन आये बुधजन भीगे, निरख्यौ ख्याल अनोखारी ॥३॥ (१०) छत्रपति
छत्रपति अथवा छत्रदास १९-२० वीं शताब्दीके कवि थे। ये आवांगढ़के निवासी थे।
vanamatar