________________
ना
A
) कानजीस्वामि-अभिनन्दन ग्रथ
BAC
..
pariyankaiaticbalad.winAmidhatanishidateAMAJastLASAA.Ctumhaat-Karatefun.
-
देहादिक पर द्रव्य न मेरे, मेरा चेतन बाना ।
'द्यानत' जो जानै सो सयाना, नहिं जानै सो अयाना ||२|| इनकी सभी रचनाएँ शिक्षाप्रद हैं।
(७) भूधरदास
भूधरदासका हिन्दी जैन कवियोंमें गौरवपूर्ण स्थान है। ये आगरे के रहनेवाले थे। इनका जन्म संवत १७५० के आसपास आगरेमें हुआ था । ये खण्डलवाल जातिके श्रावक थे । हिन्दी संस्कृतके अच्छे विद्वान् थे । कविका अध्यात्मकी ओर अधिक झुकाव था । संसारकी असारता, जीवनकी क्षणभंगुरता और भोगोंकी निरमारता पर इन्होंने खब लिखा है । इनकी कलममें जोश था, इसलिये इनका पूरा साहित्य प्रभावोत्पादक है । अब तक इनकी तीन रचनाएं उपलब्ध हो चुकी हैं । जैन शतक बहुत ही सुन्दर काव्य है और उसका प्रत्येक छंद याद रखने योग्य है । इममें १०० से अधिक छन्द हैं। उनमें मनुष्यको गलत मार्गसे हटानेवाले विविध विषयोंका बड़ा मुन्दर एवं हृदयग्राहो वर्णन किया गया है । पाश्र्वपुराण हिन्दीके महाकाव्योंकी कोटि में आता है। इसमें २३ वें तीर्थंकर भगवान् पाश्र्वनाथके जीवनका विशद एवं रोचक वर्णन है। पुराण मुंदर काव्य है तथा प्रसाद गुणसे युक्त है। कविने इसे संवत् १७.४ में आगरेमें ही समाम किया था।
कवि भूधरदासके अबतक ६८ पद प्राप्त हो चुके हैं । कविने इन पदोंमें अध्यात्मकी रसगंगा बहाई है। अपने हृदयको उज्वल रखना प्रत्येकके लिये आवश्यक है। जब तक कपटकी कृपाणको नहीं छोड़ा जाता तब तक सारे धर्म-कर्म वेकार हैं । कविका यह पद देखिये
अन्तर उचल करना रे भाई । कपट क्रपान तर्ज नहीं तब लौं. करनी काज ना सरना रे ।। जप तप तीरथ जाप व्रता दिक, आगम अर्थ उचरना रे ।।
विपै कषाय कीच नहीं धोयो, यों ही पचि पचि मरना रे ।। (८) हेमराज
हेमराज १७-५८ वीं शताब्दीके प्रसिद्ध विद्वान थे । हिन्दी गद्य साहित्यकारों में हेमराजका नाम सर्वोपरि आना चाहिये। ये स्वयं अच्छे कवि भी थे, लेकिन इन्होंने प्राकृत एवं संस्कृत ग्रंथोंका हिन्दी गद्यानुवाद ही करना उचित समझा । बनारसीदासके अन्तिम वर्षोंमें संभवतः आगरेमें इनका काफी अच्छा सम्पर्क था और वहाँकी अध्यात्मगोष्ठीके ये प्रमुख सदस्य थे । बनासीदासके साहित्यिक सहयोगी कौरपाल के लिये इन्होंने 'सितपर-चौरासी बोल 'की रचना की जिसका उल्लेख इन्होंने इस प्रकार किया है
JINCARE
SOC
INCEstatuuNIKANTHSHANTanata SSUNAK S HARATI