Book Title: Kanjiswami Abhinandan Granth
Author(s): Fulchandra Jain Shastri, Himmatlal Jethalal Shah, Khimchand Jethalal Shah, Harilal Jain
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 195
________________ A) कानजीस्वामि-अभिनन्दन ग्रंथ का - आचार्य विद्यानन्द और उनकी जैनदर्शनको अपूर्व देन श्री पं. दरबारीलालजी कोठिया न्यायाचार्य, एम. ए., प्राध्यापक जनदर्शन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी जन दार्शनिकोंमें आचार्य विद्यानन्दका मूर्धन्य स्थान है। जैनदर्शनको उनकी अभूतपूर्व देन है। प्रस्तुत निबन्धद्वारा हम उसीके सम्बन्धमें कुछ प्रकाश डालेंगे। - आचार्य विद्यानन्द आचार्य विद्यानन्द और उनके ग्रन्थ-वाक्योंका अपने ग्रन्थों में उद्धरणादिरूपसे उल्लेख करनेवाले उत्तरवर्ती ग्रन्थकारोंके समुल्लेखों तथा विद्यानन्दकी स्वयंकी रचनाओं परसे जो उनका संक्षिप्त किन्तु अत्यन्त प्रामाणिक परिचय उपलब्ध होता है और जिसे हम अन्यत्र दे चुके हैं असपरसे विदित है कि विद्यानन्द दो गंगवंशी राजाओं-शिवमार द्वितीय (ई. 810) और उसके उत्तराधिकारी राचमल्ल सत्यवाक्य प्रथम (ई. ८१६)के समकालीन विद्वान् हैं तथा उनका कार्यक्षेत्र मुख्यतया इन्हीं गंगराजाओंका राज्य मैसूर प्रान्तका वह बहुभाग था, जिसे गंगवाडि' प्रदेश कहा जाता था। यह राज्य लगभग ईसाकी चौथी शताब्दीसे ग्यारहवीं शताब्दी तक रहा और आठवीं शतीमें श्रीपुरुष (शिवमार द्वितीयके पूर्वाधिकारी)के राज्य कालमें वह चरम उन्नतिको प्राप्त था। शिलालेखों तथा दानपत्रोंसे ज्ञात होता है कि इस राज्यके साथ जैन. धर्मका घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। जैनाचार्य सिंहनन्दिने, कहते हैं इसकी स्थापनामें भारी सहा यता की थी और आचार्य पूज्यपाद-देवनन्दि इसी राज्यके गंग-नरेश दुविनीत (लगभग ई. ५००,के राजगुरु थे। अतः आश्चर्य नहीं कि ऐसे जिनशासन और जैनाचार्यभक्त राज्यमें विद्यानन्दने बहु वास किया हो और वहाँ रह कर अपने बहु-समय-साध्य विशाल तार्किक अन्थोंका प्रणयन किया हो / कार्यक्षेत्रकी तरह यही प्रदेश उनकी जन्मभूमि भी रहा हो तो कोई असम्भव नहीं है, क्योंकि अपनी ग्रन्थ प्रशस्तियोंमें उल्लिखित इस प्रदेशके राजाओंकी उन्होंने खूब प्रशंसा एवं यशोगान किया है। इन्हीं तथा दूसरे अन्य प्रमाणोंसे विद्यानन्दका समय इन्हीं राजाओंका काल स्पष्ट ज्ञात होता है। अर्थात् विद्यानन्द ई. ७७५से ई. 840 के विद्वान् हैं। विद्यानन्दके विशाल पाण्डित्य, सूक्ष्म प्रज्ञा, विलक्षण प्रतिभा, गम्भीर विचारणा, अद्भुत अध्ययनशीलता, अपूर्व तर्कणा आदिके सुन्दर और आश्चर्यजनक उदाहरण उनकी रचनाओं में पद-पदपर मिलते हैं। उनके अन्थोंमें प्रचुर ज्याकरणके सिद्धिप्रयोग, अनूठी पद्यात्मक काव्यरचना, तर्कगर्मा यादव, प्रमाणपूर्ण सैद्धान्तिक विवेचन और हृदयस्पर्शी जिनशासनभक्ति उन्हें निःसन्देह उत्कृष्ट वैवाकरण, श्रेष्ठकवि, अद्वितीय वादी, महान् सैद्धान्ती और सच्चा जिनशासन भक सिद्ध करने में अपना समर्थ है। पखवः विद्यानन्द जैसा सर्वतोमुखी प्रतिभावान् PARINEE...

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