________________
जगत सब दीसत घनकी छाया ।
पुत्र कलत्र मित्र तन संपति, उदय पुद्गल जुरि आया । भव परनति वरषागम मोहे: आस्रव पवन बहाया || १ ||
इन्द्रिय विषय लहरि तड़ता है, देखत जाय विलाया । राग-द्वेष वकुपंकति दीरघ, मोह गहल घरराया ||२|| सुमति विरहनी दुःख दायक है, कुमति संजोगत भाया । निज संपति रतनत्रय गहिकर, मुनिजन नर मन भाया ||३|| सहज अनंत चतुष्टय मन्दिर, जगजीवन सुख पाया । जगत सब दीसत धनकी छाया ||४||
श्री पं. हीरानन्दने समवसरण विधान ( संवत १७०१ ) में कवि जगजीवनका परिचय
दिया है ।
(६) धाननराय
afaar araar हिन्दीके उन प्रसिद्ध कवियों में से हैं जिनके पद, भजन, पूजा, स्तोत्र तथा जो मैकडों हजारों स्त्री-पुरुषोंको कंठस्थ गृढ़से गृढ़ भावोंको सरल शब्दों में छन्दोबद्ध उनकी कविताओंका जैन समाज में अत्यधिक
एवं रचनाएँ जन साधारण में अत्यधिक प्रिय हैं। हैं । कविता करना उनका स्वाभाविक गुण था करना उन्हें अच्छी तरह आता था. इसलिये प्रचार है ।
।
रायका जन्म संवत् १७३३ में आगरे में हुआ था । इनके बाबाका नाम बीरदास एवं पिताका नाम श्यामदास था । पहिले ये आगरे रहे और बाद में देहली आकर रहने लगे थे। आगरा एवं देहली में जो विभिन्न आध्यात्मिक शैलियां थीं उनसे कविका foto सम्बन्ध था । वे बनासीदास के समान विशुद्ध आध्यात्मिक विद्वान् थे तथा इसी चर्चा में अपने जीवनको लगा रखा था । धनोपार्जन के अतिरिक्त उन्हें जो भी समय मिलता उसे काव्यरचना एवं आध्यात्मिक चर्चा में व्यतीत करते । धर्मविलास में इनकी प्रायः सभी रचनाओंका संग्रह है । यही कविकी साहित्यिक संपत्ति थी जिसे उन्होंने अपने स्वर्णिम ३०
में समाप्त किया था । इसमें उनके ३०० पद, विभिन्न पूजापाठ एवं ४५ अन्य रचनाएँ है । सभी रचनाऐं सुन्दर एवं उत्तम भावोंके साथ गुम्फित हैं ।
छोटी
इनके पद आध्यात्मिक रससे ओत-प्रोत है । कविने संभवत आत्मको पहिचान लिया था, इसीलिये उन्होंने एक पदमें इस सम्बन्ध में यह भाव प्रगट किया हैअब हम आतमको पहिचाना | जैसा सिद्धक्षेत्रमें राजे, तैसा घटमें जाना ॥ १ ॥