Book Title: Kanjiswami Abhinandan Granth
Author(s): Fulchandra Jain Shastri, Himmatlal Jethalal Shah, Khimchand Jethalal Shah, Harilal Jain
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 184
________________ ) कानजीस्वामि-अभिनन्दन ग्रंथ | Relaamparp RENIArknehi-GRAHARAJaisit- varatahkalkudE.AIRS अध्यात्मसवैय्या हिन्दी भाषाकी एक ऐसी रचना है जिसके मननसे मनुष्यका भटकता हुआ मन शुद्धोपयोगकी ओर ढल सकता है। यथा अनुभौ अभ्यासमें निवास सुध चेतन को, अनुभौ सरूप सुध बोधको प्रकास है। अनुभौ अनूप उपरहत अनंत ज्ञान, अनुभौ अनीत त्याग ग्यान सुख रास है ॥ अनुभौ अपार सार आप ही को आप जाने, आप ही में व्याप्त दीस जामै जड नास है । अनुभौ अरूप है सरूप चिदानन्द 'चन्द ' अनुभौ अतीत आठ कर्म म्यौं अफास है ।। रूपचन्द्रकी रचनाओंके अतिरिक्त कितने ही पद भी मिलते हैं जो समाजमें अत्यधिक प्रिय हैं। तथा बहुतसे श्रावकोंको कंठस्थ हैं। इनके पदोंमें भक्ति एवं अध्यात्म दोनोंकी धारा बही है। एक ओर जब वे "प्रभु तेरी महिमा जानि न जाई" कहते हैं तो दूसरी ओर " चेतन सौ चेतन लौ लाई ' के गीत भी गाते हैं । 'प्रभु मुखको उपमा किससे दी जावे ।' चद्रमा और कमल दोनों ही दूषित हैं तब फिर उनसे मुख की उपमा किस प्रकार दी जा सकती है, इसलिये प्रभु मुख तो उपमा रहित है जिसके दर्शन-मात्रसे ही मुख उत्पन्न होता है । इन्हीं भावोंको कविने अपनी कविताओं में निबद्ध किया है। इस प्रकार कविवर रूपचन्द अध्यात्मसाहित्यके प्रमुख उपासक थे। आत्मा और परमात्माका गुणानुवाद ही उन्हें भाता था। इनका ममय संवत् १६३० से १६९३ तक अनुमानित किया जा सकता है। बनारसीदासके अर्धकथानककी समामि तक संभवतः ये जीवित थे। आगरा इनका प्रमुख केन्द्र था और यहीं पर ये अध्यात्मका रसपान कराया करते थे। अभी एक हस्तलिखित ग्रंथमें इनका चित्र मिला है. जिसमें इन्हें स्थल शरीरवाले व्यक्तिके रूपमें प्रदर्शित किया गया है। लेकिन चित्रसे मालूम पड़ता है कि कवि अच्छी वेषभूषामें रहते थे। (४) बनारसीदास बनारसीदास १७वीं शताब्दीके प्रसिद्ध हिन्दी कवि हैं। काव्य प्रतिभा उन्हें सहज ही में मिली थी, इसलिये इन्होंने बचपनसे ही कविताएं निबद्ध करना प्रारम्भ कर दिया था। बनारसीदासका जन्म एक मध्यमश्रेणी परिवार में संवत् १९४३ में हुआ था। इनके माता पिता और स्वयं कविके समक्ष सदा ही अर्थसंकट रहा । फिर भी इन्होंने अपने जीवनका जो सदुपयोग किया वह हमारे लिय अनुकरणीय है। आठ वर्षकी अवस्थामें इन्हें पढ़ने भेजा गया। लेकिन एक ही वर्ष तक अध्ययन किया होगा कि इनकी सगाई कर दी गई और ११ वर्षके होते होते तो इनका विवाह ही कर दिया गया। जब अपनी वधुके साथ घरमें प्रवेश किया तो उसी दिन नानीका स्वर्गवास, बहिनका जन्म हुआ और इस प्रकार कविने एक साथ एक दिनमें ही जन्म, मरण एवं विवाह ये तीन घटनाऐं देखीं ENTE TET

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