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नारी स्वातंत्र्यः
लित कुटुम्ब-जो दया, प्रेम, स्नेह, परोपकार,
जीव-सेवा, संयम और शुद्ध अर्थ-वितरणकी - [ हिंदी कल्याण ]
एक महान् संस्था है, जिसमें दादा-दादो, ताऊ. स्त्री अपने इस प्राकृतिक उत्तरदायित्वसे ताई, चाचा-चाची, भाई-भौजाई, देवर-जेठ, बच नहीं सकती। जो बचना चाहती है, सास-पतोहू, मामा-मामी, बूआ-बहिन, मौसीउनमें विकृतरुपसे इसका उदय होता है। मौसे, भानजे-भानजी, भतीजे-भतीजी आदिका विकृतरूपसे होनेवाले कार्यका परिणाम बड़ा एक महान सश्रंखल कटम्ब है. और जिसके भयानक होता है। यरोपमें नारी-स्वातन्त्र्य हैं, भरण-पोषण तथा पालनमें गृहस्थ अपनेको पर वहाँकी स्त्रियाँ क्या इस प्राकृतिक दायि- धन्य और कृतार्थ समझता है-का तो वहाँ स्वसे बचती हैं ? क्या वासनाओंपर उनका नामोनिशान भी नहीं मिलेगा। स्वतन्त्रता काबू है ? वे चाहे विवाह न करें या सामाः तथा समानाधिकारके युद्धने वहाँके सुन्दर जिक विघटन होनेके कारण चाहे उनके योग्य घरको मिटा दिया है ! इसीसे वहाँ जरा-जरा-सी उम्र में न होने पावें; परन्तु पुरुष-संसर्ग तो हुए बातमें कलह, अशान्ति, विवाह-विच्छेद या विना रहतो नहीं। अभी हालमें इंग्लैंडकी आत्महत्या हो जाती है। वहाँ स्त्री अब घरकी पालामेंटकी साधारण सभामें एक प्रश्नके उत्त- रानी नहीं है, घरमें उसका शासन नहीं चलता, रमें मजदूरसदस्य श्रीयुत लेजने बतलाया कि ग्रहस्थ-जीवनका परम शोभनीय आदर्श उसकी 'इंग्लैंडमें २० वर्षकी आयुवाली कुमारियोंमेंसे कल्पनासे बाहरकी वस्तु हो गया है। घरको ४० प्रतिशत विवाहके पहले ही गर्भवती पायी सुशोभित करनेवाली श्रेष्ठ गृहिणी, पतिके जाती है। और विवाहित स्त्रियोंके प्रथम प्रत्येक कार्यमें हृदयसे सहयोग देनेवाली सहसन्तानमें चारमें एक अर्थात् २५ प्रतिशत धर्मिणी और बच्चों को हृदयका अमीरस पिला
(व्यभिचारजन्य) होती है। आपने कर पालनेवाली माताका आदर्श वहाँ नष्ट यह भी कहा कि 'देशका ऐसा नैतिक पतन हुआ जा रहा है । 'व्यक्तिगत स्वातन्त्र्य' और कभी देखनेमें नहीं आया ।' कहते हैं कि 'स्वतन्त्र प्रेम के मोहमें वहाँकी नारी आज अमेरिकाकी स्थिति इससे भी कहीं भयानक इतनी अधिक पराधीन हो गयी है कि उसे दरहै। क्या ऐसा स्त्री-स्वातन्त्र्य भारतीय स्त्री दर भटककर विभिन्न पुरुषों की ठोकरें खानी कभी सहन कर सकती है?
पड़ती हैं ! जगह-जगह प्रेम बेचना पड़ता है ! आपने लिखा कि 'पाश्चात्त्य देशोंमें स्त्रियोंकी नौकरोके लिये नवे-नवे मालिकोंके दरवाजे स्वतन्त्रताके तथा शिक्षाके कारण बड़ी उन्नति खटखटाने पड़ते हैं और no vacancy की सूचना हुई है। मेरी धारणामें यह कथन भ्रमपूर्ण है। पढ़कर निराश लौटना पडता है। यह कैसी उन्नतिका एक उदाहरण तो ऊपर बतलाया स्वतन्त्रता है और कैसा सुख है ? जा चुका है । इसके सिवा, यदि ध्यान देकर आप कहती हैं कि 'वहाँकी शिक्षिता स्त्रीदेखा जाय तो पता लगेगा कि वहाँका पारि- योंमें बहुमुखी विकास हुआ है।' यह सत्य है वारिक जीवन प्रायः नष्ट हो गया है। सम्मि- कि वहाँ अक्षर-शानसे पर्याप्त विस्तार है।