Book Title: Kaise Sulzaye Man ki Ulzan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 11
________________ नहीं है? व्यक्ति पत्नी, परिवार और व्यवसाय से भी ज्यादा मानसिक उलझन, चिंता तथा तनाव से घिरा हुआ है। किशोर भी इसी तनाव से ग्रस्त हैं और वृद्ध भी। कोई जवान भी तो कहाँ बचा है इससे? कैंसर, एड्स और सार्स जैसी भयानक बीमारियाँ तो दुनिया में पाँच-दस फीसदी लोगों तक ही पहुंची हैं लेकिन तनाव ने तो हर किसी को घेर रखा है। दुनिया की एक प्रतिशत आबादी एड्स से ग्रस्त है, दो प्रतिशत आबादी कैंसर से ग्रस्त है, पांच प्रतिशत पोलियो से ग्रस्त है, दस प्रतिशत विभिन्न प्रकार के रोगों से ग्रस्त हो सकती है लेकिन शायद इन सबको भी मिलाकर तनाव का प्रतिशत ज्यादा ही होगा। इस रोग की पीड़ा और इसकी उलझन को तो वही जान सकता है जो इससे गुजरा है। दुनिया के किसी भी रोग से ज्यादा पीड़ादायी है तनाव का रोग जो जीते-जी व्यक्ति को मारकर ख़त्म कर देता है। हमारे पचास प्रतिशत रोगों का मूल कारण तनाव है। सावधान रहें, चाहे सिर दुख रहा है या पेट, जरूर इसके मूल में किसी प्रकार का तनाव ही जुड़ा होगा। शरीर में रोग होता है, रोगी डॉक्टर के पास जाता है और डॉक्टर रोग के लक्षणों के आधार पर दवा देता है । वह रोग तो दब जाता है पर नया रोग पैदा हो जाता है। मन को स्वस्थ किये बगैर जब भी तन का इलाज होगावह निष्प्रभावी ही होगा। इलाज तो पहले मन का हो और उसके बाद तन का। अच्छी सेहत के लिए तनाव-रहित जीवन सर्वप्रथम आवश्यक है। तनाव से घिरा हुआ व्यक्ति यदि व्यापार भी करेगा तो उसका व्यापार भारभूत बनकर उसे असफलता ही दिलाएगा। तनावग्रस्त विद्यार्थी की मानसिक क्षमता और एकाग्रता क्षीण हो जाती है वह रातभर जग कर पढ़ाई करता है, उसके बावजूद अनुत्तीर्ण हो जाता है। तनावग्रस्त व्यक्ति अगर मिठाई और पकवान भी खाए तो वे बेस्वाद हो जाते हैं, तनाव ग्रस्त व्यक्ति अपेक्षित परिणाम हासिल नहीं कर पाता है। वहीं जीवन का उत्साह, उमंग और आनंद जीवन की हर गतिविधि में जान डाल देता है। तनाव है घुन, बजाएँ शांति की धुन दुनिया में चाहे जितने आश्चर्य हों पर मानव-मस्तिष्क से बड़ा आश्चर्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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