Book Title: Jiravala Parshwanath Tirth Ka Itihas
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 5
________________ जगजयवंत जीवावला प्रस्तावना परमात्मा महावीर का पवित्र शासन 21000 साल तक भव्य प्राणियों को कल्याणकर बना रहेगा, इस कल्याणकर शासन की नींव में जैन आगम और जिनबिंब का मुख्य योगदान है। श्रमण भगवंतों के समागम एवं आगम के उपदेशादि पाकर भव्य जीवों को अपने अंधकारमय भवयात्रा में सम्यक्त्वरूपी पवित्र दीप की प्राप्ति हुई और होती रहेगी, उसी तरह जब श्रमण भगवंतों का योग नहीं हो, उस काल में भी अपने सम्यक्त्व को निर्मल रखने में और श्रावकों को शासन की छत्रछाया में टिके रखने में स्वतंत्र रूप से जिन चैत्य, जिनबिंबों का अविस्मरणीय अचिन्त्य उपकार बना रहता है। किसी भी दर्शन/धर्म की यथार्थता का निर्णय करने हेतु उसके शास्त्र का ऐतिहासिक अवलोकन जरुरी है एवं जिनालय और जिनचैत्य के महात्म्य की पहचान हेतु उनके इतिहास का ज्ञान आवश्यक है। प्राचीन तीर्थों की ऐतिहासिकता का ज्ञान उनकी यथार्थ महिमा जानने हेतु अत्यावश्यक है। स्थापत्य संपत्ति के मूल्य के मुकालबे, तीर्थ का इतिहास अधिक मूल्यवान है। अतः इतिहास का रक्षण अत्यावश्यक कर्तव्य है। __ प्रस्तुत ग्रंथ में संपादक सुश्रावक श्री भूषण शाह ने शास्त्र दृष्टि से तीर्थ समक्ष को उमदा रीति से प्रदर्शित किया है। संपादक ने अति उत्साह एवं भक्तिभाव से जिनशासन में विशिष्ट स्थान को प्राप्त ‘जगजयवंत जीरावला तीर्थ' के पुनः प्रतिष्ठा के शुभावसर पर श्री जीरावला पार्श्वनाथ प्रभु एवं इस तीर्थ के प्राचीनतम इतिहास का संकलन कर ग्रंथारुढ़ किया, यह शासन सेवा आदरणीय एवं अवलंबनीय है। तीर्थ की ऐतिहासिक गरिमा को गाने वाले कई प्रसंग एवं शास्त्रीय उल्लेखों को इकट्ठाकर उन्हें क्रमानुसार करके इतिहास की सुरक्षा का अत्यंत सराहनीय कार्य सम्पन्न किया है। इस ग्रंथ के अवलोकन से भक्तजनों तथा बुद्धिप्रधान इतिहास प्रेमिओं के हृदय में भी श्रद्धा के बीज अंकुरित होंगे, जिन्हें वे प्रभुभक्ति रूपी जल से सिंचते हुए अंत में मोक्षरूपी फल को प्राप्त करेंगे, यही आशा रखते हुए... -सूरि गुणरत्नान्तेवासी - पुण्यरत्नसूरि, श्री वरकाणा पार्श्वनाथ जैन तीर्थ, जिला-पाली, राजस्थान - यशोरत्नसूरि चैत्र सुद 12, वि. सं. 2072, दि. 18-04-2016 - 3

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