Book Title: Jiravala Parshwanath Tirth Ka Itihas
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 15
________________ = जगजयवंत जीवावला भी तीर्थ स्थलों के दर्शन, वंदन एवं यात्रा की अवधारणा स्पष्ट रूप से थी और इसे पुण्य कार्य माना जाता था। निशीथचूर्णी में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि तीर्थंकरों की कल्याणक भूमियों की यात्रा करने से दर्शन की विशुद्धि होती है, अर्थात् व्यक्ति की श्रद्धा पुष्ट होती है।' इस प्रकार जैनों में तीर्थंकरों की कल्याणक-भमियों को तीर्थ रूप में स्वीकार कर उनकी यात्रा के स्पष्ट उल्लेख आगमिक साहित्य में भी मिलता है। कल्याणक भूमियों के अतिरिक्त वे स्थल, जो मंदिर और मूर्तिकला के कारण प्रसिद्ध हो गये थे, उन्हें भी तीर्थ के रूप में स्वीकार किया गया है और उनकी यात्रा एवं वन्दन को भी बोधिलाभ और निर्जरा का कारण माना गया है। निशीथची में तीर्थंकरों की जन्म कल्याणक आदि भूमियों के अतिरिक्त उत्तरापथ में धर्मचक्र, मथुरा में देवनिर्मित स्तूप और कोशल की जीवितस्वामी की प्रतिमा को पूज्य बताया गया इस प्रकार वे स्थल, जहाँ कलात्मक एवं भव्य मंदिरों का निर्माण हुआ अथवा जहाँ जिन-प्रतिमा चमत्कारी हो अथवा परम प्रशमरस से भक्तजनों को साक्षात् तीर्थंकर की प्रतीति कराती हो, ऐसे प्राचीन अथवा एकान्त स्थान स्थित मंदिर भी तीर्थ रूप में माने जाते हैं। सच्चे भाव से की गई तीर्थ यात्रा मूलतः पुण्य व निर्जरा का कारण बनती है.... अतः आईये इस तीर्थयात्रा के द्वारा हम भी पुण्य व निर्जरा को प्राप्त करें। 3. निशीथ चूर्णी , भाग 3, पृ. 24 4. उत्तरावहे धम्मचक्कं, महुर ए देवणिम्मिय थूभो कोसलाए व जियंतपडिमा, तित्थकराण वा जम्भूमीओ। निशीथचूर्णी, भाग-3, पृ-79 -13

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