Book Title: Jiravala Parshwanath Tirth Ka Itihas
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 45
________________ जगजयवंत जीवविला इसी प्रकार पं. कल्याणसागरजी ने अपनी पार्श्वनाथ चैत्य परिपाटी में एवं कवि ज्ञानविमलजी ने अपनी तीर्थमाला में जीरावला पार्श्वनाथ का बहुत आदर पूर्वक नाम लिया है। ___सं. 1755 में ज्ञानविमलसूरि कृत तीर्थमाला में जीरावला का इस प्रकार वर्णन हिवे तिहांली संचर्या सुणि सुन्दरि आव्या मढ़ाड़ी मजारि साहेलड़ी बिचि ब्रह्मााणी जीराउलो सुणि सुन्दरी। विजयप्रभसूरि के समय में हुए मेघविजय उपाध्याय विरचित 'श्री पार्श्वनाथ नाम माला' (वि. सं. 1721) में जीरावला पार्श्वनाथ का उल्लेख है। पं. कल्याणसागर विरचित पार्श्वनाथ चैत्य परिपाटी में जीरावला का इस प्रकार वर्णन है -- जीराउलि जग में जागतो, सूरतिमई हो दीपई सुखकंद। सं. 1886 में दीपविजयजी ने 'जीरावला पार्श्वनाथ स्तवन' में इस तीर्थ की महिमा का वर्णन किाय है - स्वस्ति श्री त्रिभुवन पति जयकारी रे; जीरावली जिनराज जग उपकारी रे। प्रणमी पदकंज तेहना जयकारी रे, वरणुं ते महाराज जग उपकारी रे॥ उक्त शास्त्रपाठों से तीर्थ के महत्त्व व चमत्कार का एहसास होता है। 430

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