Book Title: Jiravala Parshwanath Tirth Ka Itihas
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 56
________________ = जगजयवंत जीवावला पार्श्वनाथ भगवंत का 'त्रलोक्य विजय' नाम के महामंत्र-यंत्र से गर्भित स्तोत्र निर्मित किया, जिसके प्रभाव से विष अमृत हो गया। इस स्तोत्र की पंजिका-व्याख्या के अंत में उन व्याख्याकार ने बताया है कि - 'इस महास्तोत्र के करने के बाद थोड़े समय में परमगुरु मेरुतुंङ्गसूरि क्षीणजंघाबलवाले होने के कारण जीरापल्लि पार्श्व की तरफ चलते संघ के साथ के कोई सुश्रावक के साथ भगवंत की महिमा-स्तुतिरूप तीन श्लोक पत्रिका में लिखकर भेजा था और श्रावक को कहा था कि - ‘भगवान के सामने हमारी प्रणति रूप पत्रिका रख देना।' उसके बाद संघ के साथ में श्रावक वहाँ गया था और उसने भगवान के आगे पत्रिका रख दी थी। इसलिये भगवान के अधिष्ठायक देव ने श्रीसंघ में विघ्नों के उपशांत के लिये 7 गुटिकाएँ दी थी। और कहा था कि - 'ये गुटिकाएँ गुरु को देना।' उसने भी आकर ये गुटिकाएँ गुरु को समर्पित कर दीथी। उसके प्रभाव से संघ में विशेष प्रकार से ऋद्धि-वृद्धि हुई थी। इसलिये इन तीन (3) श्लोकों का भी सात (7) स्मरणों (अंचलगच्छ में पठन-पाठन किये जाने वाले) में से इस महास्तोत्र के अंत में पठन करने में आता है। 54

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