Book Title: Jiravala Parshwanath Tirth Ka Itihas
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 43
________________ जगजयवंत जीरावला 'जयु पास जीराउलु जगमंडण जग चंद । जास पसाई पामीई नितनित परमान्द ।।' वि. सं. 1568 में कवि लावण्यसमय ने विमल प्रबन्ध रास खंड 3 गाथा 118 में लिखा है - 'जीरउलानउ महिमा धणउ । ' उन्हीं के खीमा ऋषि रास में भी जीरवला की स्तुति की गई है - जीरउलउ जिण यंत्रणउ गडी मंडण पास। सुरसेवक जे तसुतणा पूरई जहा मन आस ।। इन्हीं लावण्यसमयजी ने ‘जीराउला पार्श्वनाथ स्तवन' जीराउली गहुँली आदि लिखी है। आचार्य शांतिसूरि चरित अर्बुदाचल चैत्य परिपाटी पद्य 17 के प्रारंभ में 'जीरापल्ली पास जुहारी' वन्दना की गई है पाटण जैन भण्डार में सुरक्षित संवत 1582 में वाचक सहजसुन्दर द्वारा लिखित रत्नसार कुमार चौपाई में जीरावला पार्श्वनाथ की स्तुति की गई है। इसी तरह सुधाभूषणजी के शिष्य जिनसूरि ने 'प्रियंकर नृप कथा' में जीरावला का स्मरण प्रत्येक पद्य के आद्यअक्षर में किया है 'जीभई साचुं बोलिजे राग रोस करि दूरि । उत्तमसुं संगति करो लाभई सुख जिम भूरि ।।' सं. 1605 में उपकेशगच्छ के आचार्य कक्कसूरि के शिष्य कवियण ने 'कुल ध्वज रास' में जीरावला पार्श्वनाथ की वंदना की है - 'पास जिणेसर पय नमी जीराउलि अवतार, महियलि महिमा जेहनउ दीसई अतिहि उदार । ' कवि कुशल संयम ने अपने 'हरिबल रास' के प्रारंभ में इस प्रसिद्ध तीर्थ का उल्लेख किया है - 'पहिलउ प्रणमुं पासं जिण जीराउलनुं राय, मन वंछित आपई सदा सेवई सुरपति पाय ।' 41

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