Book Title: Jiravala Parshwanath Tirth Ka Itihas
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 48
________________ जगजयवंत जीवावला जीरावलाजी तीर्थ से जुड़ी कुछ एतिहासिक घटनाएँ भगवान पार्श्वनाथ तो स्वयं चिन्तामणि हैं। उनके महाप्रभावक स्वरूप का वर्णन हम क्या कर सकते हैं ? यहाँ कुछ मात्र आपके समक्ष प्रस्तुत किये जाते हैं। 1. यह घटना वि. सं. 1318 की है। जैनाचार्य श्री मेरुप्रभसूरिजी महाराज अपने 20 शिष्यों सहित ग्रामानुग्राम विहार करते हुए श्री जीरापल्ली गाँव की ओर जा रहे थे। वे कुछ ही आगे बढ़े थे कि रास्ता भूल गये और बहत समय तक पहाड़ी की झाड़ियों के आसपास चक्कर लगाते रहे, किन्तु रास्ता नहीं मिला। उधर दिन अस्त होता जा रहा था। इस जगंल में हिंसक जानवरों की बहलता थी और रात का समय जंगल में व्यतीत करना खतरे से खाली नहीं था। इस पर आचार्यश्री ने अभिग्रह धारण किया कि जब तक वे इस भयंकर जंगल से निकल कर श्री जीरावला पार्श्वनाथजी के दर्शन न कर लेंगे, तब तक अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे। इस अभिग्रह के कुछ ही समय बाद सामने से एक घुड़सवार आता दिखाई दिया। इस भयंकर घाटी में जहाँ उन्हें घंटों से कोई आदमी दृष्टिगोचर न हुआ था, वहाँ घोड़े पर आदमी को आते हुए देखकर कुछ ढाढस बंधा। घुडसवार ने आचार्यश्री को जीरावल्ली गाँव तक पहुँचा दिया। आचार्यश्री ने इस घटना का वर्णन किया है। 2. वि. सं. 1463 के समय की बात है। ओसवाल जातीय एक दुधेड़िय गोत्रीय श्रेष्ठीवर्य आभासा ने भरुच नगर से 150 जहाज माल के भरे और वहाँ से अन्य देश में व्यापार के लिये रवाना हआ। जब जहाज मध्य समुद्र में पहुँच गया तो समुद्र में बड़ा भारी तूफान उठा। सभी जहाज डांवाडोल होने लगे। आभासा को ऐसे संकट काल में शान्तिपूर्वक वापस लौटने का विचार आया और उसने प्रतिज्ञा की कि यदि उसके जहाज सही सलामत पहुँच जायें तो वहाँ पर पहुँचते ही सबसे पहले श्री जीरावला पार्श्वनाथजी के दर्शन करुंगा। और उसके बाद अन्य देश में व्यापार के लिये रवाना होऊंगा। इस प्रकार प्रतिज्ञा करके जहाजों को वापस लौटने का हुक्म दिया। सबके सब जहाज बिल्कुल सुरक्षित वापस पहँच गये और सेठ. आभासा ने भी अपनी प्रतिज्ञानुसार वापस पहँच कर सर्वप्रथम श्री जीरावला पार्श्वनाथ तीर्थ की यात्रा की। 46

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