Book Title: Jiravala Parshwanath Tirth Ka Itihas
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 39
________________ जगजयवंत जीवावला सं. 1320 के लगभग मांडवगढ़ (मालवा) के मंत्रीश्वर पेथडशा ने 84 जिनमंदिर करवाये थे उसमे से एक मंदिर जीरापुर में करवाया था। यह जीरापुर शायद जीरावला ही होगा एवं मंदिर करवाने का अर्थ जीर्णोद्धार करवाना होगा। उनके वंशज झांझणशाह ने वि. सं. 1340 के माघ सुदी 5 के दिन नागदा के नवखंडा पार्श्वनाथ को नमन करने के पश्चात् संघ समेत जीरावला की तरफ प्रस्थान किया था एवं वहाँ सिंघवी ने करोड़ों पुष्पों से पुष्प पूजा तथा 6 मन कपूर से धूप पूजा की थी। 1 लाख द्रव्य की लागत से तैयार मोतियों एवं सोने के भरे चन्दोवे को मंदिरजी के लिये अर्पित किया था। ___ (पंडित रत्न मंडनगणि विरचित सुकृतसागर तरंग - 3-8) वि. सं. 1380 में 'सप्ततिशतस्थान' इत्यादि ग्रंथों के रचनाकार तपागच्छ नायक सोमतिलकसूरि ने शत्रुञ्जय महातीर्थ में वन्दन करते समय जीरापल्ली पार्श्व भवन में 14 जिनेश्वर देवों को वंदन किया है। _ 'चिल्लतलावल्ली समीपे अलक्ष देव कुलिकायां अजितनाथ भवने जीरापल्ली पार्श्व भवने च 14 जिनान् वंदतेस्म।' ___- कथा कोश (छाणी जैन ज्ञान मंदिर हस्तलिखित प्रति।पत्र 171) विक्रम की 14वीं सदी के उत्तरार्द्ध में सुलतान मुहम्मद तुलक पर प्रभाव डालने वाले जिनप्रभसूरि के 'जीरिकापुरपतिं सदैवतं' से प्रारम्भ होने वाला 15 पद्ममय जीरापल्ली पार्श्वनाथ स्तवन लिखा था। विक्रम की 15वीं सदी में आचार्य श्री जयसिंहसूरि ने जीरावला मंडल श्री पार्श्वनाथ स्तोत्र में इस तीर्थ पति की अत्यन्त भावभरी स्तुति की है : प्रणमदमर मौलिस्प्रेकोटीरकोटी, प्रसृमर किरणौद्योनिनद्रपादारविन्दम्। विधुर विविध बादुम्भोधितीराभं, जीरावलिनिलयमहं तं स्तौमि वामातनूजम्॥1॥ चकास्ति कुशलावलीलन वेश्य जीरावली, मही वलय मण्डन स्त्रिजगती विपत्खंडनः। य एष भुवन प्रभुः स जयसिंहसूरिं स्तुती, 37

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