Book Title: Jiravala Parshwanath Tirth Ka Itihas
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 14
________________ जगजयवंत जीवावला स्थल के रूप में वन-पर्वत आदि तीर्थों के रूप में विकसित हुए। यद्यपि अपवादिक रूप में हिन्दू परम्परा में भी कैलाश आदि पर्वतों को तीर्थ माना गया, वहीं जैन परम्परा में शत्रुजय नदी आदि को पवित्र या तीर्थ के रूप में माना गया है, किन्तु यह इन परम्पराओं के पारस्परिक प्रभाव का परिणाम था। पुनः हिन्दू परम्परा में जिन पर्वतीय स्थलों जैसे कैलाश आदि को तीर्थ रूप में माना गया उसके पीछे भी किसी देव का निवास स्थान या उसकी साधनास्थली होना ही एकमात्र कारण था, किन्तु यह निवृत्तिमार्गी परम्परा का ही प्रभाव था। मूल आगम, व्याख्या साहित्य और ऐतिहासिक संसोधनों के आलोक में (तीर्थ और तीर्थ यात्रा) __ जैन परम्परा में भी तीर्थंकरों की कल्याणक भूमियों को पवित्र स्थानों के रूप में मान्य करके तीर्थ की अवधारणा का विकास हुआ। आगमों में तीर्थंकरों की चिता की भस्म एवं अस्थियों को क्षीरसमुद्रादि में प्रवाहित करने तथा देवलोक में उनके रखे जाने के उल्लेख मिलते हैं। उनमें अस्थियों एवं चिता भस्म पर चैत्य और स्तूप के निर्माण के उल्लेख भी मिलते हैं। जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति में ऋषभदेव भगवान के निर्वाणस्थल पर स्तूप बनाने का उल्लेख है।' उसी तरह चौद पूर्वीओं द्वारा रचित जीवाजीवाभिगम आगम में हमें देवलोक एवं नन्दीश्वर द्वीप में शाश्वत चैत्य आदि के उल्लेखों के साथ-साथ यह भी वर्णन मिलता है कि पर्व तिथियों में देवता नंदीश्वरद्वीप जाकर महोत्सव आदि मनाते हैं। लोहानीपुर और मथुरा में उपलब्ध जिन-मूर्तियों, अयागपटों, स्तूपांकनों तथा पूजा के निमित्त कमल लेकर प्रस्थान आदि के अंकनों से यह तो निश्चित हो जाता है कि जैन परंपरा में चैत्यों के निर्माण और जिन प्रतिमाँ के पूजन की परंपरा ई. पू. की तीसरी शताब्दी में भी प्रचलित थी। तीर्थ और तीर्थयात्रा सम्बन्धी उल्लेख नियुक्ति, भाष्य और चूर्णी साहित्य में भी उपलब्ध होते हैं। आचारांग नियुक्ति में अष्टापद, उर्जयन्त, गजाग्रपद, धर्मचक्र और अहिच्छात्रा को वंदन किया गया है। इससे स्पष्ट होता है कि नियुक्ति काल में 1. (अ) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 2/111 (लाडनूं), (ब) आवश्यक नियुक्ति 45, (स) समवायांग 3513 1. जीवाजीवाभिगम तच्चा चुउब्विह पडिवत्ती सू. 183 2. अट्ठावय उजिते गयग्गपए धम्मचक्के य। पासरहावतनगं चमरुप्पायं च वंदामी। आचारांगनियुक्ति - पत्र 18 - 12 ==

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