Book Title: Jiravala Parshwanath Tirth Ka Itihas
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 29
________________ जगजयवंत जीवावला मृत्यु को प्राप्त हो गया। बाहर ही बहुत बड़े सर्प ने उसे डंक मारा और वह वहीं पर धराशाही हो गया। अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के घावों को भरने में लुम्भा ने बहत सहायता की और जैन धर्म के गौरव को बढ़ाया। लुम्भाजी का उत्तराधिकारी तेजसिंह था। उसने अपने पिता की नीति का पालन किया और जैन धर्म को संरक्षण प्रदान किया। तेजसिंह के पश्चात् कान्हड़देव और सामंतसिंह के अधीन यह प्रदेश रहा। पंडित श्री सोमधरगणि विरचित उपदेश सप्तति के जीरापल्ली सन्दर्भ में जीरावला तीर्थ सम्बन्धी कथा इस प्रकार दी गई है - ___ सं. 1190 में ब्राह्मण (आधुनिक वरमाण) स्थान में धांधल नाम का एक सेठ रहता था। उसी गाँव में एक वृद्ध स्त्री की गाय सदैव सेहिली नदी के पास देवीत्री' गुफा में दूध प्रवाहित कर आती थी। शाम को घर आकर यह गाय दूध नहीं देती थी। पता लगाने पर उस वृद्धा को स्थान का पता लगा। यह सोचकर कि यह स्थान बहुत चमत्कार वाला है, धांधल को बताया। धांधलजी ने मन में सोचा कि रात को पवित्र होकर उस स्थान पर जायेंगे। वे वहाँ जाकर के परमेष्ठि भगवान का स्मरण कर एक पवित्र स्थान पर सोये। उस रात में उन्होंने स्वप्न में एक सुन्दर पुरुष को यह कहते हुए सुना कि जहाँ गाय दूध का क्षरण करती है वहाँ पार्श्वनाथ भगवान की मूर्ति है। वह व्यक्ति उनका अधिष्ठायक देव था। प्रातःकाल धांधलजी सभी लोगों के साथ उस स्थान पर गये। उसी समय जीरापल्ली नगर के लोग भी वहाँ आये और कहने लगे कि अहो ! तुम्हारा इस स्थान पर आगमन कैसा ? हमारी सीमा की मूर्ति तुम कैसे ले जा सकते हो ? इस तरह के विवाद में वहाँ खड़े वृद्ध पुरुषों ने कहा कि भाई गाड़ी में एक आपका व एक हमारा बैल जोतो जहाँ गाड़ी जाएगी वहाँ मूर्ति स्थापित होगी। इस तरह करते यह बिंब जीरापल्ली नगर में आया। सभी महाजनों ने यहाँ प्रवेशोत्सव किया। पहले चैत्य में स्थापित वीर बिंब को हटाकर श्री संघ की अनुमति-पूर्वक बिंब को इसी चैत्य में स्थापित किया। बाद में वहाँ पर अनेक संघ आने लगे तथा उनका मनोरथ उनका अधिष्ठायक देव पूर्ण करने लगा। इस तरह यह तीर्थ प्रसिद्ध हुआ। ऐसी मान्यता है कि यवन सेना के द्वारा मूर्ति खण्डित होने पर यहाँ पर अधिष्ठायक देव की आज्ञा से दसरी मूर्ति की स्थापना हई, पहली मूर्ति नवीन मूर्ति के दक्षिण भाग में स्थापित की गई थी। इस मूर्ति को सर्व प्रथम पूजा जाता है एवं 1. वरमाण व जीरावला के बीच बूड़ेश्वर महादेव के मंदिर के पास यह गुफा है। = 27

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