Book Title: Jinabhashita 2005 08
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 8
________________ १. सामूहिक देव-शास्त्र-गुरु पूजन। २. साधुओं को आहारदान (स्वयं के द्रव्य से, स्वयं के घर पर) ३. साधुओं की नियमित वैयावृत्ति ४. प्रवचन श्रवण ५. बडे विधानों/पूजन प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन ६. धार्मिक शिक्षण-प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन ७. चातुर्मास के मध्य आने वाले पर्यों के विशेष आयोजन ८. निकटस्थ विराजमान साधुओं की वन्दना हेतु यात्राओं के आयोजन ९. अभक्ष्य पदार्थों का त्याग १०. शास्त्र प्रकाशन ११. सामूहिक वाचनाओं, स्वाध्याय, सामायिक आदि के आयोजन १२. तीर्थों के जीर्णोद्धार हेतु संकल्प लेकर दानराशि भिजवाना। ___ इस तरह हम अपने जीवन को साधुसंगति में कृतार्थ करते हुए धर्म के संस्कारों से स्वयं एवं परिवार को संस्कारित कर सकते हैं। वर्षायोग अपने आध्यात्मिक विरासत को समझने का विलक्षण संयोग है जिससे हम स्वयं जुड़ें और जैनत्व की धारा में जन-जन को जोड़ने का प्रयत्न करें। हम साधु भले ही न बन सकें किन्तु हममें साधुता का भाव आ जाये तो जीवन सफल हो जायेगा। डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन समाधि डॉ.सुरेन्द्र जैन 'भारती' कुण्डलपुर मनोज जैन 'मधुर' अपने बड़े बाबा का पर्वत पर धाम। चलो चलें दर्शन को कुण्डलपुर ग्राम। जिसने बड़े बाबा को मन से पुकारा, बाबा ने संकट से उसको उबारा। बनते बिगड़े सभी के यहाँ काम। २ आधि, व्याधि और उपाधि से श्रेष्ठ है समाधि जिसने पायी और जो पायेगा वही भव्य परम सत्य पायेगा। समाधि की साधना सरल नहीं सघन होती है आधि, व्याधि और उपाधि से बचना पड़ता है बचना पड़ता है झूठे मोह-व्यामोह से। समाधि मात्र मुक्ति नहीं मुक्ति के लिए भले ही हो वह भुक्ति तो बिल्कुल नहीं है युक्ति से काम लेना पड़ता है इसमें तब मिलता है वह वर जिसे कहते हैं हम घर स्वाधीन/स्वतंत्र निरालम्ब/निष्कर्म परम पावन। कुण्डल-सा आकार पर्वत ने पाया। देवों ने आ-आ के, अतिशय दिखाया। छवि लगे बाबा की नयनाभिराम । हम सबको अपने ही, कर्मों ने घेरा। काटो बडे बाबा कर्मों का फेरा। दूर नहीं बाबा ये जीवन की शाम। सीएस/१३, इंदिरा कॉलोनी, बागउमरावदुल्हा, भोपाल 6 अगस्त 2005 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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