Book Title: Jinabhashita 2005 08
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 29
________________ ६. ९. जैन समाज के प्रमुख विद्वानों में अग्रगण्य श्रीमान् | पदाधिकारियों हेतु सुझाव प्राचार्य नरेन्द्र प्रकाश जैन के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से हम सब परिचित हैं। वे समय-समय पर समसामयिक परिस्थितियों एवं गतिविधियों पर एक पैनी नजर रखते हुए समाज को सावधान करते हुए उचित परामर्श प्रदान करते रहे हैं। सुनना, समझना और मानना यह उसे ही इष्ट होता है जो सोचता है। कि जो कुछ हो, जो कुछ हो रहा हो, वह अच्छा हो। इसी मानसिकता को ध्यान में रखते हुए श्रद्धेय प्राचार्य जी ने श्री अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्रि परिषद् के प्रीति विहार, नई दिल्ली में दिनांक १० जून, २००५ को उपाध्याय श्री गुप्तिसागर जी महाराज के सानिध्य में आयोजित ८० वें अधिवेशन में परिषद के अध्यक्ष पद से निवृत्त होते हुए तथा नये अध्यक्ष डॉ. श्रेयांस कुमार जैन को कार्यभार सौंपते हुये संस्था की प्रगति एवं उसमें विश्वास बनाये रखने के लिये निम्नलिखित १५ सूत्रीय सुझाव दिये। परिषद के विकास हेतु सुझाव १. २. ३. ४. प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाशजी जैन के १५ सूत्रीय सुझाव ५. श्री अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्रि परिषद की स्थापना सन् १९०४ की गई थी । अतः १०० वर्ष की शताब्दी विवरणिका प्रकाशित की जाये । पंडित लालबहादुर जी शास्त्री एवं पंडित बाबूलाल जमादार के कार्यकाल में जो ट्रेक्ट प्रकाशित होते थे, वह परंपरा पुनः प्रारंभ की जाये । शास्त्रि परिषद् के बुलेटिन का नियमित प्रकाशन सुनिश्चित किया जाये । प्रतिवर्ष कम से कम एक शोध ग्रन्थ का प्रकाशन हो, ताकि विद्वानों की सृजनात्मक रचनाधर्मिता को प्रोत्साहन मिले। विद्वानों के ज्ञानवर्धन हेतु मूल आगम ग्रन्थों की वाचना के आयोजन किये जायें। ७. Jain Education International ८. १०. संस्था के धन के मामले में पारदर्शिता बरती जाये। सब के लिए समान नियम हों । संस्था के द्वारा समूह हित में कार्य हो, व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं । १२. १३. १४. १५. अन्य विद्वत् संगठनों के साथ सद्भाव एवं सहयोग रखें। समाज में उठनेवाले विवादास्पद प्रकरणों पर आगमसम्मत एवं निष्पक्ष दृष्टि रखें। सदस्यों हेतु सुझाव ११. संस्था के प्रति समर्पण का भाव रखें। विघटन या अलग संगठन बनाकर दबाव न बनायें । शिकायत न करें, सुझाव I अपनी योग्यता बढ़ाते रहें, नियमित स्वाध्याय करें । आचरण की मर्यादा बनाये रखें 1 मानदेय / भेंट के लिये समाज से विवाद न करें। यदि तय ही करना हो तो पूर्व में ही तय कर लें। अच्छा तो यही है कि समाज जो सम्मान से दे उसे स्वीकार करें । इस तरह यदि शास्त्रि परिषद् या कोई भी अन्य सामाजिक संगठन इन १५ सूत्रों पर अमल करता है तो विवाद की अप्रिय स्थितियों से बचा जा सकता है। समाज में कार्य करना कठिन होता है, लेकिन जो लोग धन, पद और प्रतिष्ठा के मोहपाश से स्वयं को बचा लेते हैं, वे समाज में निरंतर सक्रिय रह सकते हैं और समाज को भी अपने प्रभाव एवं प्रयासों से प्रभावित कर सकते हैं । यह ध्यान रहे कि समाज हर उस व्यक्ति, विचार और संस्था का स्वागत करेगा जो समाज हितैषी हो । वीर देशना विद्वान मनुष्य मित्र उसी को बतलाते हैं, जो यहाँ उसे हितकारक पवित्र धर्म में प्रवृत्त करता है। The wise say that a friend is one who helps in following the path that takes to the sacred and beneficial charma. प्रस्तुतकर्ता : डॉ. सुरेन्द्र जैन 'भारती' एल- ६५, न्यू इंदिरानगर, बुरहानपुर (म.प्र.) For Private & Personal Use Only मुनिश्री अजितसागरजी अगस्त 2005 जिनभाषित 27 www.jainelibrary.org

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