________________
समाचार
सांगानेर जैन मन्दिर पर लगी अवमानना | मन्दिर की पुनर्विचार याचिका में कहा गया है कि स्वयं राज्य याचिका खारिज
सरकार ने मूल याचिका के जवाब में कहा है कि उक्त राजस्थान उच्चन्यायालय ने भी माना कि संरक्षण एवं सुरक्षा | मन्दिर एनिसियेन्ट मोनूमेन्ट्स प्रिजर्वेशन एक्ट 1904 एवं की दृष्टि से कराया गया जीर्णोद्धार कार्य न्यायोचित राज. मोनूमेन्ट्स एण्ड आर्कियोलोजिकल साईट्स एण्ड जयपुर, राजस्थान उच्च न्यायालय ने श्री दिगम्बर जैन
एन्टीक्वीटीज एक्ट 1961 के अधिनियमों के तहत 'संरक्षित' मंदिर संघी जी, सांगानेर के संरक्षण एवं सुरक्षा के लिये
नहीं है और राज्य सरकार द्वारा जारी गजट अधिसूचना दिनांक किये गये जीर्णोद्धार कार्य को उचित ठहराते हुए तय किया है
16.9.1968 में प्रकाशित संरक्षित इमारतों/स्थानों की सूची में
भी इसका नाम शामिल नहीं है। अत: न्यायालय द्वारा सरकार कि मन्दिर के पुरातत्त्व स्वरूप को ध्यान में रखते हुये जीर्णोद्धार
व पुरातत्त्व को किसी भी प्रकार का निर्देश दिया जाना कार्य कर इसका संरक्षण कर सकते हैं। अदालत में दायर
उचित नहीं है और न्याय हित में ऐसा निर्देश निरस्त किया अवमानना याचिका में मा. न्यायाधीशगण शिवकुमारशर्मा तथा करणीसिंह राठौड़ की खण्डपीठ ने अपने निर्णय में
जाना आवश्यक है। न्यायालय में यह पुनर्विचार याचिका कहा है कि अवमानना याचिका में वर्णित तथ्यों का आद्योपान्त
विचाराधीन है। आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि न्यायालय अनुशीलन किया,जिनके अनुशीलन से ऐसा प्रतीत होता है
से न्याय मिलेगा। कि प्रतिपक्षगण (प्रबन्धकारिणी कमेटी, मन्दिर संघी जी) ने | संघी जी मन्दिर सांगानेर के बारे में कछ लोग गमराह इस न्यायालय के आदेश की कोई अवमानना नहीं की है। | कर रहे हैं कि संघी जी मन्दिर के निर्माण कार्य को हाईकोर्ट परिणामतः प्रबन्धकारिणी कमेटी, मन्दिर संघीजी सांगानेर | ने रोक दिया है ऐसे दुष्प्रचार से समाज सावधान रहे। इस के सचिव व अन्य के खिलाफ दायर यह अवमानना याचिका | मन्दिर में जिस गति से निर्माण कार्य चल रहे थे उसी गति से निरस्त की जाती है।
आज भी चल रहे हैं। एक भी दिन के लिये कोई भी निर्माण
कार्य नहीं रुका है ना ही कोर्ट ने किसी प्रकार की पाबन्दी राजस्थान हाईकोर्ट के उक्त निर्णय से यह तय हो गया
की है। है कि कमेटी के द्वारा किये गये जीर्णोद्धार एवं निर्माण कार्य न्यायोचित हैं तथा अब तक किये गये जीर्णोद्धार कार्यों पर
निर्मल कासलीवाल, मानद मंत्री अदालत ने भी अपनी मोहर लगा दी है क्योंकि मन्दिर के
'अष्टापद कैलाश' का लोकार्पण सम्पूर्ण जीर्णोद्धार एवं निर्माण के कार्य पुरातत्त्व विभाग की राष्ट्रसंत प.पू. आचार्य विद्यासागर जी महाराज के सहमति से मन्दिर की मूल गरिमा एवं पुरातत्त्व को सुरक्षित | वरिष्ठ शिष्य महायोगी उपाध्यायरत्न प.पू. गुप्तिसागर जी रखते हुये किये गये हैं। मन्दिर में किये हुए किसी भी कार्य | महाराज के सानिध्य एवं प्रतिष्ठा महोत्सव समिति उत्तरी के लिये कोर्ट ने कोई आपत्ति अपने निर्णय में नहीं की तथा | पीतमपुरा दिल्ली के तत्वावधान में सम्पन्न समारोह के अंतर्गत जो आरोप आरोपियों द्वारा लगाये गये थे उनको भी कोर्ट ने | भगवान महावीर के ज्ञान कल्याणक की मंगलमयि छाव में स्वीकार नहीं किया है।
देश के ख्यातिलब्ध संत चरित लेखक श्री सुरेश जैन सरल इसके साथ ही श्री दिगम्बर जैन मन्दिर संघी जी
| की विचार प्रधान पुस्तक "अष्टापद कैलाश'' का विमोचन सांगानेर की ओर से राजस्थान उच्च न्यायालय में न्यायालय | राष्ट्रीय समाजसेवी श्री जगदीशराय, श्री बाबूराम, श्री सुखमाल, की उस टिप्पणी के संबंध में पनर्विचार याचिका भी दायर | श्री महेशचंद (कलकत्ता वालों) के द्वारा किया गया। उन्होंने की गई है, जिसमें मन्दिर में प्रबन्धकारिणी समिति द्वारा भविष्य | प्रस्तुत कृति को साहित्य और चिंतन की कालजयि कृति में किये जाने वाले जीर्णोद्धार करते वक्त मन्दिर के मूल एवं | निरूपित करते हुए बतलाया कि इसमें पू. महायोगी की तात्विक स्वरूप को यथावत् बनाये रखने के लिये राज्य | हरिद्वार से बद्रीनाथ (अष्टापद कैलाश) की करीब २५ सरकार एवं परातत्व विभाग को भी निर्देश दिये गये हैं। । दिवसीय "पदयात्रा" के साथ चित्त में चलते "सोच' को 30 अगस्त 2005 जिनभाषित -
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org