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राजा रामचन्द्रजी के राज्य में सती सीता
थी।
ब्र. शान्तिकुमार जैन सती सीता माता का जीवन काल विवाहोपरान्त ही अत्यन्त । रामचन्द्रजी सीता को अयोध्या लौटा लाये। राज्याभिषेक हुआ संघर्षमय रहा था। जीवन में संघर्ष होते ही हैं, कम या अधिक। राजा रामचन्द्रजी का। वनवास में तीनों ने अखण्ड ब्रह्मचर्य का बिना संघर्ष के जीवन भी क्या जीना। महापुरुष तथाकथित | पालन किया था। सीता रानी जी गर्भवती हुईं। पति रामचन्द्र जी सुख-शान्ति के गृहस्थ जीवन को त्यागकर कर्मों से संघर्ष करने | जानते थे कि सीता सती हैं, निर्दोष हैं, शीलवन्ती, पतिव्रता हैं। के लिए वन में तपस्या करने चले जाते हैं।
कोई सन्देह संशय रंचमात्र भी नहीं था। परन्तु राजतंत्र में भी सती सीता के जीवन की हलचल में कई प्रश्न दिल | लोकतंत्र की पराकाष्ठा ऐसी थी कि सामान्य पुरजनों के आरोपों दिमाग में उभरते हैं। यहाँ उन पर गतानुगतिकता से पृथक् नए | से प्रभावित होकर लोकतंत्र की रक्षा के लिए सीता रानी को दृष्टिकोण से विचार समीक्षा करना है। विवक्षित व्यक्ति एवं | राजा रामचन्द्रजी ने वनवास दे दिया था। विषय के प्रति मर्यादा अक्षुण्ण रखते हुए पूर्ण आदर-सम्मान राजनीति न सही, लोक व्यवहार, न्यायनीति, मानवाधिकार सहित यह चिन्तन है। आगम का आलोक कहीं मन्द हो जाए | इत्यादि की तो यही माँग बनती है कि सीता रानी के साथ कोई तो दोष नहीं लेवें, अपितु क्षमा करें।
भी कम से कम एक तो साथी-सहेली, सेविका, दासी तो भेजना महाराजा दशरथ एवं राजा जनक को अनेक साधु, | थी। पुरुषोत्तम राजा रामचन्द्रजी को तीर्थयात्रा का छल करना ज्योतिषी, निमित्तज्ञानियों का सान्निध्य प्राप्त था, फिर भी विवाह | पड़ा। क्षायिक सम्यग्दृष्टि बलदेव तद्भव-मोक्षगामी भगवान् के पहले जन्मकुण्डली का मिलान नहीं कराया गया, कारण वर | रामचन्द्रजी के द्वारा ऐसी भूल नहीं हो सकती। उन्हें यह दृढ़ का चयन धनुर्भंग स्वयंवर पद्धति से हुआ था। राज्याभिषेक में | विश्वास था कि सीता का पुण्य इतना उत्कृष्ट है कि उनके साथ भी मुहूर्त की श्रेष्ठता देखी गई होगी, परन्तु रामचन्द्रजी की | कोई अनहोनी दुर्घटना नहीं हो सकती है। दीर्घकाल के वनवास कुण्डली में ग्रहयोग को क्यों और किससे देखा जाता।राज्याभिषेक | का पूर्वानुभव भी निर्वाह में सहायक रहेगा। सीताजी के गर्भ में की प्रस्तुति में सभी भाव-विभोर एवं विभिन्न कार्यों में व्यस्त थे। | दो मोक्षगामी पुण्यात्मायें हैं, उन्हीं से रक्षणावेक्षण भी होता रहेगा। उनके वनवास की आशंका तो किसी को भी स्वप्न में भी नहीं | सीता माता के पक्ष से भी देखा जाए तो यह उनके भविष्य में
आर्यिका साध्वी के जीवन को ग्रहण करने में उत्साहवर्धक रामचन्द्रजी, सती सीता एवं लक्ष्मण तीनों वनवास को सहायक सिद्ध हुआ। परिवार के प्रति मोह का बंधन भी ढीला चले गए। यहीं से जो वनवास में ही आवास का क्लेश निरन्तर | होता गया। जो कुछ भी हो रहा था, ठीक ही हो रहा था। कुछ मध्यान्तरों के साथ सीता माता को मिलता रहा यही उनके लवकुश नाम के दो पुत्ररत्नों के साथ सकुशल अयोध्या जीवन में संघर्षों की करुण कहानी है। लक्ष्मण के द्वारा रावण | पुनरागमन के पश्चात् फिर अग्नि परीक्षा का प्रकरण अत्यंत की बहिन के पुत्र की हत्या एवं बहिन के साथ दुर्व्यवहार के | चिन्ताजनक है। जिज्ञासा होती है कि सीता सती ने अग्निकारण बदले की भावना से क्षत्रिय विद्याधर रावण ने सीताजी | परीक्षा के पहले ही आर्यिकादीक्षा क्यों नहीं ले ली? अग्नि में का अपहरण विद्याबल से किया। परन्तु परस्त्री सेवन के दग्ध हो जाती तो सतीत्व पर अमिट कलंक लग जाता। परंतु निषेधात्मक व्रत को भंग नहीं किया। अब सीता रानी राजा | अग्निपरीक्षा का आदेश होने के पश्चात् दीक्षा लेने पर भी तो रामचन्द्रजी से भी अलग हो गईं, पर मिला तो वही अशोक वन | यही कहा जाता कि मरण से भयभीत हो गई हैं। वनवास में का निवास। सीता के लिए तो अशोक वाटिका वन ही था। । निर्वासन का कलंक तो तब तक साथ लगा ही हुआ था। उसके
पुराणों में पाया जाता है कि महापुरुष संकट के समय | शुद्धीकरण के लिए ही तो लोकतंत्र के जनप्रिय राजा रामचन्द्र भी सम-सामयिक केवलज्ञानी, अवधिज्ञानी साधु सन्तों से मार्गदर्शन | जी के रामराज्य में सती सीता को राजरानी के रूप में पुनः नहीं लेते थे। रामचन्द्र जी सीता को खोजते रहे। रावण ने सम्पूर्ण | संस्थापित भी तो करना था। वंश का विनाश करा दिया। पहले ही दिन युद्ध करने चला जाता पवनपुत्र हनुमान की माता अञ्जना सती का जीवन तो ऐसा सर्वनाश होता ही क्यों?
बहुत कुछ शील का कलंक लगने की अपेक्षा ऐसा ही था। ऐसी लंका में तो परिवार-परिजन में मात्र विधवायें ही रोते | महान् आत्माओं के जीवन में अशुभ कर्मों के तीव्र उदय में ऐसे विलखती बच गई थीं। जिन्होंने ध्वंस का पूर्वाभास कर लिया | मिथ्यादोषारोपण हृदय को ही विचलित कर देते हैं। कैसे उन्होंने था, वे अनेक दिव्य पुरुषार्थी त्याग तपस्या को अंगीकार करके | सहन करके जीवननिर्वाह किया था, इसकी कल्पना भी कर आत्म कल्याण करने चले गए।
पाना दुष्कर है। उनकी तुलना में हम लोगों के जीवन में होने युद्ध में अनेकानेक मनुष्यों का, पशुओं का संहार हआ। | वाली प्रतिकूलतायें तो अत्यन्त हीन हैं।
- अगस्त 2005 जिनभाषित 17
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