Book Title: Jinabhashita 2005 08
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 17
________________ बोनचाईना की सच्चाई भारतीय संस्कृति में जीवन यापन के लिए संसाधन प्राप्ति हेतु अहिंसक, शुद्ध व पवित्र उपाय बतलाए गए हैं। ऋषि-मुनियों ने भोज्य पदार्थों के साथ-साथ बाह्य प्रयोग में भी अहिंसक वस्तुओं को उपयोग में लाने के लिए प्रेरित किया है। तब से अहिंसक समाज अहिंसा में विश्वास रखनेवाले अपने आराध्य, भगवन्तों, साधु-सन्तों के उपदेशों पर आस्था रखते हुए उनके बताए अनुसार जीवन निर्वाह करते चले आ रहे हैं । किन्तु वर्तमान भौतिक युग अहिंसा पर कुठाराघात कर केप्सुल हिंसा के रूप में संसाधनों को प्रस्तुत कर रहा है। चाहे भोज्य सामग्री हो, सौन्दर्य प्रसाधन हो या फिर जीवन से संबंधित अन्य भौतिक वस्तुएँ हों, सभी को आँख बंद कर शुद्ध पवित्र - अहिंसक नहीं माना जा सकता है, क्योंकि इनमें अण्डे, मछली, माँस, शराब, हड्डी, चमड़ा, खून, चर्बी आदि का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रयोग होता है । अर्थयुग ने धर्म एवं धर्मात्माओं की भावनाओं को कुचल दिया है, जिसकी एक बानगी बोनचाईना है । कुछ लोग अज्ञानता के कारण बोनचाईना को मात्र 'नाम' मानते हैं और इसमें कुछ भी अशुद्धि नहीं है, यह तो पत्थर-मिट्टी से बनता है, ऐसा कहकर बोनचाईना की क्रॉकरी को घरों में उपयोग करना, होटल आदि में उसमें खाना-पीना, अतिथियों को उसमें खिलाना - पिलाना अपनी शान समझते हैं। ऐसे लोग आलस्य प्रमाद के कारण बिना खोज-बीन किए अशुद्ध वस्तुएँ उपयोग कर अपना धर्म और Jain Education International क्षुल्लक धैर्यसागर महाराज पवित्रता नष्ट कर रहे हैं। साथ ही अपनी श्रद्धा भी खो रहे हैं। अभी कुछ दिन पूर्व एक व्यक्ति ने बोनचाईना की क्रॉकरी खरीदी और मुझसे पूछा, "क्या आप लोग बोनचाईना की क्रॉकरी में रखे आहार- पानी का उपयोग करते हैं?" तब हमने कहा, "नहीं, और उपयोग करना तो छोड़ो, जिस घर में बोनचाईना हो वहाँ पर तो हम साधुगण आहार भी ग्रहण नहीं करते हैं।" तो उसने कारण पूछा। तब हमने कहा, 'इसमें हड्डियों का चूर्ण होता है।" तो वह बोला, "प्रूफ (प्रमाण) दीजिए ?" हमने खोजबीन चालू कर दी, तब अजमेर के सुरेन्द्र शर्मा नामक भक्त ने एक पेपर की कटिंग लाकर दी, जो 'पंजाब केसरी' के २४ अगस्त २००२ के संस्करण के पेज नं. ४ की है। उसमें जो लिखा है वह इस प्रकार है : बोन चाइना में हड्डियों की राख होनी है जानकारी मिली होती है। इसमें प्रयुक्त हड्डियां भेड़बकरियों या गाय-भैंसों की होती हैं। ये राख 'आजकल घर-घर में बोन चाहना से बने चीनी मिट्टी के बर्तनों को अधिक टिकाऊ बर्तनों का प्रचलन है। बल्कि अपनी शान व सम्पन्नता के प्रदर्शन के लिए लोग इनका इस्तेमाल अधिक करते हैं। अधिकतर शाकाहारी लोग भी इन्हीं बर्तनों में भोजन करते हैं। ऐसे सभी लोग शायद इस तथ्य से अनजान हैं कि इन महंगे बर्तनों को बनाने हेतु जो मिश्रण तैयार किया जाता है यानी पक्का बनाने तथा उन्हें सफेद रंग प्रदान करने हेतु डाली जाती है। कुल मिश्रण में हड्डियों की राख 20 से 25 प्रतिशत तक होती है। इन बर्तनों को बनाने के लिए तैयार मिश्रण में चीनी पत्थर, सिलिका, एल्युमीनियम, नींबू तथा क्षार भी होते हैं। जरा सोचिए क्या ये हड्डियां मरे हुए जानवरों की होती हैं या मारे उसमें वास्तव में 'बोन' यानी हड़ियों की राख गए जीवों की। इसके अतिरिक्त कुछ बच्चों ने इन्टरनेट पर सर्च किया तो बताया कि "http:/www.thepotteries.org/types/ bonechina.htil" नामक वेबसाइट पर यह लिखा हुआ है। कि "Josiah Spote II (1754-1824) ने सन् १७९७ में बोनचाईना बनाकर दिखाया था और बताया था कि तकनीकी बोनचाईना एक सख्त पदार्थ है, जो क्ले और नॉन-ग्लासी पदार्थ से बनता । इसके अन्दर ५० प्रतिशत तक जानवरों की हड्डियाँ, २५ प्रतिशत चाईना क्ले (एक तरह की मिट्टी), २५ प्रतिशत चाईना स्टोन होता है। इन सबको १२०० डिग्री अगस्त 2005 जिनभाषित 15 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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