Book Title: Jinabhashita 2005 08
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 26
________________ जिज्ञासा-समाधान पं. रतनलाल बैनाड़ा जिज्ञासा : सम्यग्दर्शन के 63 गुण कौन से होते हैं, , त्याग) निदान शल्य का त्याग(विषय सुख की अभिलाषा समझाईये? रुप निदान शल्य का त्याग) समाधान : कार्तिकेयानुप्रेक्षा गाथा 326 की टीका में | ____ (ऊ) अष्ट मूलगुण के धारण रुप आठ गुण (मद्य, इस प्रश्न का उत्तर दिया गया है, उसी के अनसार यहाँ | मांस, मधु एवं पंच उदुम्बर फलों का त्याग) वर्णन कर रहे हैं। (ए) सप्तव्यसन के त्याग रुप सात गुण : जुआ (अ) सम्यक्त्व के 25 गुण : 3 मूढ़ता (लोकमूढ़ता, खेलना, माँस भक्षण करना, मदिरापान करना, वेश्यासेवन करना,शिकार करना, चोरी करना तथा परस्त्री सेवन करना देवमूढ़ता और गुरुमूढ़ता)आठ मद (ज्ञानमद, पूजामद, इन सात व्यसनों का त्याग करना। कुलमद, जातिमद, बलमद,ऋद्धिमद, तपमद, रुपमद) छह अनायतन (कुदेव, कुशास्त्र और कुगुरु तथा उनके सेवक) इसप्रकार 25+8+ 5 +7+ 3+8 + 7-63 गुण से तथा आठ शंकादि दोष (शंका, कांक्षा, विचिकित्सा, मूढदृष्टि, विशिष्ट सम्यग्दृष्टि, विशेष पूजा का पात्र होता है। इनमें से अनुपगूहन, अस्थितिकरण, अवात्सल्य, अप्रभावना) इन 25 प्रथम 48 तो मूलगुण और अन्त के 15 को उत्तरगुण कहा दोषों को टालने से सम्यक्त्व के 25 गुण होते हैं। गया है। (आ) सम्यक्त्व के आठ गुण : संवेग (धर्म और | प्रश्नकर्ता : सौ. ज्योति लुहाड़े , कोपरगांव धर्म के फल में अनुराग होना) निर्वेद (संसार,शरीर और जिज्ञासा : कौन से निगोद से आया हुआ जीव कौन से विरक्ति) निन्दा (अपने दोषों को कहना) गर्दा (गरु | सा संयम धारण कर सकता है? की साक्षी में अपने दोष कहना)उपशम (कषायों की मन्दता समाधान : नित्यनिगोद तथा इतरनिगोद से निकले होना) भक्ति (रत्नत्रय और रत्नत्रय के धारकों की भक्ति | जीव सीधे मनुष्य बनकर मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। भगवती करना) अनुकम्पा (प्राणि मात्र पर दया करना) वात्सल्य आराधना गाथा 17 का अर्थ इसप्रकार है, 'अनादिकाल से (साधर्मियों से नि:स्वार्थ प्रीति करना)। मिथ्यात्व का तीव्र उदय होने से अनादिकालपर्यन्त जिन्होंने (इ) पाँच अतिचारों के त्याग रूप पाँच गुण : शंका | नित्य निगोद पर्याय का अनुभव लिया था ऐसे 923 जीव (सर्वज्ञ के वचनों में शंका होना)कांक्षा (इस लोक और निगोदपर्याय छोड़कर भरत चक्रवर्ती के भद्रविवर्धनादि नाम परलोक में भोगों की चाह होना) विचिकित्सा (निर्ग्रन्थ साधुओं धारक पुत्र उत्पन्न हुए थे। वे इसी भव से त्रस पर्याय को प्राप्त के मलिन शरीर को देखकर ग्लानि करना) अन्य दृष्टि प्रशंसा | हुए थे । भगवान आदिनाथ के समवशरण में द्वादशांग वाणी (मिथ्यादृष्टियों के ज्ञान और चारित्र की मन से तारीफ करना) का सार सुनकर रत्नत्रय की आराधना से अल्पकाल में ही अन्य दृष्टि संस्तव (मिथ्यादृष्टियों के गुणों का वचन से कहना) मोक्ष प्राप्त किया है' इन पांच अतिचारों के टालने से पाँच गुण होते हैं। यह वर्णन वादर निगोदिया जीवों की अपेक्षा है। अर्थात् वादर निगोदिया जीव सीधे मनुष्य भव प्राप्त कर मोक्ष गमन (ई) सप्त भय त्याग होने से सात गुण : इस लोक कर सकते हैं। परन्तु सूक्ष्म निगोदिया जीव सीधे मनुष्य पर्याय संबंधी भय का त्याग, परलोक संबंधी भय का त्याग, कोई प्राप्त कर पंचम गुणस्थान तक अर्थात् देशसंयम को प्राप्त पुरुष आदि मेरा रक्षक नहीं है, इसप्रकार अरक्षा भय का कर सकते हैं, इससे आगे नहीं। जैसा कि श्री धवला पुस्तक त्याग, आत्मरक्षा के उपायों के अभाव में अगुप्ती भय का 10 में कहा है, 'सुहमणिगोदेहितो अण्णत्थ अणुप्पजिय मणुस्सेसु त्याग, मरण भय का त्याग, वेदना भय का त्याग,बिजली उप्पण्णस्स संजमासंजम-सम्मत्ताणं चेव गिरने आदि रुप आकस्मिक भय का त्याग। गहणपाओग्गत्तुवलंभादो' अर्थ : सूक्ष्म निगोद जीवों में से (उ) तीन शल्यों के त्याग रुप तीन गुण : माया शल्य | अन्यत्र न उत्पन्न होकर मनुष्यों में उत्पन्न हुए जीव के त्याग (दूसरों को ठगने आदि का त्याग)मिथ्यात्व शल्य | संयमासंयम और सम्यक्त्व के ही ग्रहण की योग्यता पायी त्याग (तत्त्वार्थ श्रद्धान के अभाव रुप मिथ्यात्व शल्य का | जाती है। 24 अगस्त 2005 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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