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सेन्टीग्रेड से १३०० डिग्री सेन्टीग्रेड तक के तापमान पर गरम | असेव्य-अग्राह्य माना है। जैन आयुर्वेदिक-शास्त्रों में जीवों करके बनाया जाता है। जर्मनी में १८वीं शताब्दी में इसे | के कलेवर से बनी भस्म भी अभक्ष्य की श्रेणी में ही रखी आधुनिक रूप प्रदान किया गया था।
गई है। बोनचाईना की क्रॉकरी में ५० प्रतिशत वजन हड्डियों वास्तु एवं ज्योतिष शास्त्रों में लिखा है कि जिस जमीन का होता है और जिसका प्रयोग क्रॉकरी को सफेद एवं सख्त में हड्डी, चमड़ी, जीवाश्म आदि अशुद्ध पदार्थ गड़े हों तो बनाने के लिए किया जाता है, जिससे यह आसानी से बिकने उन्हें निकालकर शल्य को दूर कर देना चाहिए, जिससे कोई में आ जाए।
दुष्प्रभाव न होने पाये। वेल्स के राजकुमार ने १७९९ में इस पर लगी रोक उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखकर अहिंसक-शाकाहारी हटाकर इसे व्यापार के लिए खोल दिया और बोनचाईना के
समाज को एवं भारतीय संस्कृति को मानने व अपनानेवालों बर्तन कारखानों में बनने लगे।
को सावधान हो जाना चाहिए, जिससे अप्रत्यक्ष हिंसा को एक दूसरी वेबसाइट पर www.capitalonline.com | बढ़ावा नही मिल। पर 'The Capital' Annapolis, Maryland USA. Published ध्यान रहे कि बोनचाईना, फाइनचाईना, लेनोक्सचाईना May 06, 2005 नामक पत्रिका की जानकारी है, जिसमें | की क्रॉकरी जैसे- टी-सेट, कॉफी-सेट, मिल्क-सेट, डिनरबोनचाईना के बाद फाइनचाईना एवं लेनोक्सचाईना की जानकारी | सेट, फ्लॉवर-पॉट, सीनरीज आदि वस्तुएँ आपके घर में भी दी हुई है। बोनचाईना को ही अधिक तापमान पर तैयार | अपवित्रता पैदा कर आपके धर्म को/धर्माचरण को नष्ट कर करने पर वह फाइनचाईना कहलाती है तथा फाइनचाईना के | किसी-न-किसी रूप में अशांति लाते हैं। मेटेरियल में धातु का मिश्रण करके लेनोक्सचाईना तैयार की
लेकिन यह सोचना कि हम इस्तेमाल नहीं करते/करेंगे, जाती है। अत: फाइनचाईना एवं लेनोक्सचाईना भी हड्डियों
किन्तु मेहमान लोगों के लिए अच्छी चीजें रखनी पड़ती हैं, से ही बनते हैं, जो काफी महंगे होते हैं।
नहीं तो लोग क्या सोचेंगे। इस दिखावे की संवेदनहीन जिन्दगी जयपुर में जे.सी.पी.एल., भारत एवं दिल्ली नामक | से किसी का भी भला नहीं होनेवाला है। जब हम अशुद्धबोनचाईना क्रॉकरी तैयार करने वाली कम्पनियाँ हैं। कम्पनियों
अपवित्र मानकर इस्तेमान नहीं करते, तो फिर अतिथियों के से पूछा गया तो उनके प्रबन्धकों ने बताया कि ४० से ५० | साथ अपवित्रतापूर्ण व्यवहार क्यों? चंद पैसों के दिखावे में प्रतिशत तक इस क्रॉकरी में हड्डियों की राख होती है। | अपनी मानवीय सद्भावनाएँ क्यों खोएँ?
अजमेर के हुकुमचंद सेठी ने बताया कि 'हम इसके साथ ही सरकार से जोरदार माँग करना चाहिए बोनचाईना वाली कम्पनियों को क्रिस्टल (स्टोन) सप्लाई | कि हम अहिंसक, शाकाहारी समाज को यह जानकारी लेने करते हैं और हमने क्रॉकरी बनते देखी है और बनानेवालों से |
| का पूर्ण अधिकार है कि कोई भी वस्तु अहिंसक संसाधन से पूरी जानकारी ली है। उनके अनुसार उसमें हड्डियों का | | बनी है या हिंसक। अत: खाने-पीने वाले पदार्थों के अलावा चूर्ण होता है, यह पूर्णतः सत्य है।'
भी सौन्दर्य प्रसाधन एवं अन्य बाह्य प्रयोग के पदार्थों में भी कुछ लोगों का कहना है कि हड्डियों की राख अशुद्ध
| हरा एवं लाल चिन्ह लगाया जाना चाहिए, जिससे हम कैसे? वह तो अग्नि से जलकर पवित्र हो गई है। किन्तु यह
अहिंसक समाज मांस, चमड़ा, हड्डी, खून, चर्बी या अन्य लत है, क्योंकि पवित्र-अपवित्रता की मान्यता
कोई जीवाश्म जैसे अशुद्ध पदार्थों से बनी वस्तुओं से बचकर शास्त्र-विहित है। ऐसी परिस्थिति में पवित्र-अपवित्रता की
| अपनी पवित्रता बचा सकें। ध्यान रहे कि निष्क्रियता अधिकारों जो व्याख्या शास्त्रों में है, वह ही मान्य है। शास्त्र कहते हैं कि | | एवं स्वाभिमान से वंचित कर देती है। अग्नि से संस्कारित अण्डा, मछली, मांस, खून, हड्डी,
प्रस्तुति : निर्मलकुमार दोषी चमड़ा, चर्बी आदि भी अशुद्ध-अपवित्र हैं। अतः इनको
दयालशाह, कांकरोली (राजस्थान) 16 अगस्त 2005 जिनभाषित
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