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है। पंच-कल्याणक की समस्त क्रिया मुख्यतया चतुर्निकाय | आ गया? जन्मकल्याणक के समय तो केवल जल से के देव सम्पन्न करते हैं, इसलिए पंच-कल्याणक प्रतिष्ठा में | अभिषेक किया जाता है। आगमिक परम्परा के अनुसार उनका आह्वान और स्थापना की जाती है तथा क्रियाविधि के | इसके ऐतिहासिक अनुसन्धान की आवश्यकता है। इससे
सम्पन्न होने पर उनका विसर्जन भी किया जाता है। इसलिए । | तथ्यों पर बहुत कुछ प्रकाश पड़ने की सम्भावना है। • वहाँ पर इस श्लोक की सार्थकता भी है। देवपूजा में इसकी | निष्कर्ष रंचमात्र भी सार्थकता नहीं है।
देवपूजा के विषय में इतना ऊहापोह करने से निष्कर्ष तीसरी बात अभिषेक के विषय में कहनी है। सामान्यतः | के रूप में हमारे मन पर जो छाप पड़ी है, वह यह है कि अभिषेक के विषय में दो मत पाये जाते हैं। एक मत यह है | वर्तमान पूजाविधि में कृतिकर्म का जो आवश्यक अंश छूट कि जिन-प्रतिमा की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा हो जाती है, इसलिए | गया है, यथास्थान उसे अवश्य ही सम्मिलित कर लेना उसका अभिषेक जन्मकल्याणक का प्रतीक नहीं हो सकता। | चाहिए और प्रतिष्ठापाठ के आधार से इसमें जिस तत्त्व ने दूसरे मत के अनुसार अभिषेक जन्मकल्याणक का प्रतीक | प्रवेश कर लिया है, उसका संशोधन कर देना चाहिए; क्योंकि माना गया है। सोमदेव सूरि इस दूसरे मत से अनुसर्ता जान | पंच-कल्याणक प्रतिष्ठाविधि में और देवपूजा में प्रयोजन आदि पड़ते हैं, क्योंकि उन्होंने अभिषेक-विधि का विधान करते | | की दृष्टि से बहुत अन्तर है। वहाँ अप्रतिष्ठित प्रतिमा को समय वह सब क्रिया बतलायी है जो जन्माभिषेक के समय | प्रतिष्ठित करना यह प्रयोजन है और यहाँ प्रतिष्ठित प्रतिमा को होती है। फिर भी, यह अवश्य ही विचारणीय हो जाता है | साक्षात 'जिन' मानकर उसकी जिनेन्द्रदेव के समान उपासना कि यदि अभिषेक जन्मकल्याणक के समय किये गये | करना यह प्रयोजन है। अभिषेक का प्रतीक है, तो इसमें पंचामृताभिषेक कहाँ से
_ 'ज्ञानपीठ पूजाञ्जलि' के 'प्रास्ताविक वक्तव्य' से साभार
राँची में पंचकल्याणक महोत्सव संपन्न संत शिरोमणी आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री १०८ प्रमाणसागर जी महाराज के ससंघ सान्निध्य में प्रतिष्ठाचार्य ब्र. जिनेश जी, जबलपुर द्वारा पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव सोल्लास संपन्न हुआ। दिगम्बर जैन मंदिर राँची में भगवान ऋषभदेव के ग्यारहवीं सदी में निर्मित तीन जिनबिम्ब विराजमान हैं। ये तीनों जिन बिम्ब मानभूमि (बंगाल प्रान्त) से प्राप्त हुए थे। इनका निरंतर क्षरण हो रहा था। पूज्य मुनिश्री ने समाज को इन प्रतिमाओं का जीर्णोद्धार कराकर इनका क्षरण रोकने एवं पंचकल्याणक प्रतिष्ठा द्वारा इन प्रतिमाओं की पुनः प्रतिष्ठा कराने का निर्देश दिया। मुनिश्री की पावन प्रेरणा एवं मंगल आशीर्वाद से भगवान ऋषभदेव के तीनों प्राचीन बिम्बों का जीर्णोद्वार कराया गया। जीर्णोद्धारोपरांत जिन बिम्ब की पुनः प्रतिष्ठापना हेतु श्री पंचकल्याणक महा महोत्सव का आयोजन किया गया।
राँची नगर के इतिहास में पहली बार आयोजित इस महोत्सव का शुभारंभ प्रतिष्ठाचार्य ब्र. जिनेश जी मढ़िया जी जबलपुर (म.प्र.) ब्र. नरेश जी, ब्र. अन्नू जी के कुशल निर्देशन में सम्पन्न हुआ। संघस्थ ब्र. बाबा शांतिलाल जी एवं ब्र. रोहित जी और स्थानीय विद्वान पं. पंकज जैन 'ललित' और पं. अरविंद जी का भी उल्लेखनीय योगदान रहा। गर्भ कल्याणक के दिन पूज्य मुनिश्री प्रमाणसागर जी ने अपनी ओजस्वी वाणी में हजारों श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा कि भ्रूण हत्यारे सम्पूर्ण मानवता के लिए कलंक हैं' मुनि श्री ने प्रवचनों ने उपस्थित जन समुदाय के दिलो दिमाग को झकझोर कर रख दिया उपस्थित सभी श्रोताओं ने भ्रूण हत्या त्याग कर संकल्प व्यक्त करते हुए अपने दोनों हाथ ऊपर उठा लिये।
आहार दान के प्रसंग पर मुनिश्री प्रमाणसागर जी ने कहा कि "निग्रंथ दिगम्बर साधुओं को श्रावकों की निधि नहीं विधि चाहिए"।
___ पंचकल्याणक महोत्सव से समाज में नवचेतना का उदय एवं संस्कारों का शंखनाद हुआ है। मुनिश्री की प्रेरणा से समस्त जैन पंचायत राँची ने रात्रिकालीन सामूहिक भोज एवं रात्रि विवाह पर संकल्प पूर्वक प्रतिबंध लगा दिया है। जैनेतर समुदाय ने जैन समाज के इस निर्णय की मुक्त कंठ से प्रशंसा की।
पं. पंकज जैन 'ललित'
अगस्त 2005 जिनभाषित 11
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