Book Title: Jin Dharm Vivechan Author(s): Yashpal Jain, Rakesh Jain Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 9
________________ १७ जिनधर्म-विवेचन से व्यापार-धन्धे के विषय में जानता/समझता है। माँ, बेटी को रोटी बनाने की कला सिखाती है। रेलवे से यात्रा करते समय कुछ गलती हो जाए तो टी.सी. अथवा अन्य यात्री भी गलती करनेवाले को समझाते हैं और वह यात्री उनसे समझता है। पढ़ानेवाले शिक्षक अपने विद्यार्थियों से पूँछते हैं - समझ में आया? विद्यार्थी उत्तर देता है - हाँ गुरुजी! समझ में आया; अतः घर से लेकर बाजार तक सब स्थानों पर समझने का कार्य चलता रहता है। इसप्रकार 'समझना' यह कार्य हो गया। कोई भी कार्य, कारण के बिना नहीं होता - यह नियम है। समझने रूप कार्य के पीछे तो ज्ञान कारण है ही, लेकिन समझाने रूप कार्य के पीछे भी ज्ञान ही कारण है। ज्ञान के बिना समझना और समझाना असम्भव है। इसप्रकार ज्ञान अर्थात् जानकारी लेते-देते समय हम मनुष्यों को रातदिन स्पष्टरूप से जानते हुए देखते हैं; अतः मनुष्य, ज्ञान करता है या जानता है - यह विषय स्पष्ट हुआ। ६. प्रश्न - क्या इस जगत में मात्र मनुष्य ही जानता है? गाय, बैल, हाथी, घोड़े, कीड़े, मकोड़े, चींटी मच्छर आदि प्राणी नहीं जानते हैं क्या? उत्तर - अरे भाई! गाय, बैल, हाथी आदि प्राणी भी जानते हैं। यदि जानवर नहीं जानते होते तो वे अपने मालिक को पहिचानने का काम कैसे करते? चींटी भी जानती है, इस कारण तो वह मीठी चीजों के पास जाती है और मिर्च से दूर रहती है। अरे! अन्य कीड़े-मकौड़ों की क्या बात करें? वनस्पति भी जानती है। जिधर धूप होती है, उधर पेड़ की टहनियाँ अधिक झुकती हैं; जिस दिशा में पानी हो अथवा गीलापन हो, उधर वृक्ष की जड़ें अधिक मात्रा में फैलती हैं; क्योंकि वृक्षों को उनसे पोषण मिलता है। ७. प्रश्न - इन उदाहरणों से आप क्या समझाना चाहते हैं? उत्तर - जिसके पास ज्ञान है, वही जीवद्रव्य है - ऐसा हमें निर्णय होता है। इस तरह तर्क के आधार से जीव की सिद्धि होती है। विश्व-विवेचन ८. प्रश्न - पुद्गलद्रव्य की सिद्धि तर्क के आधार से कैसे होगी? उत्तर - यद्यपि पाँच इन्द्रियों से ज्ञात होने योग्य भी एक द्रव्य है, उसे नाम क्या दिया जाए? यह विषय अलग है; तथापि यह विषय स्पष्ट समझ में आता है कि स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण और शब्द - इनका ज्ञान हमें इन्द्रियों के माध्यम से होता है। इन्द्रियगम्य मात्र एक ही द्रव्य है, जिसे जिनवाणी में पुद्गल कहा जाता है। एक मात्र यही द्रव्य 'रूपी' है। 'रूपी' शब्द का अर्थ मात्र वर्णवाला नहीं, 'रूपी' का अर्थ है - जो स्पर्श, रस, गन्ध एवं वर्ण से सहित है, उसे 'रूपी' कहते हैं। इसीप्रकार पूरन-गलन की क्रिया जिसमें हो, उसे पुद्गल कहते हैं। यह लक्षण सत्यरूप से प्रतीत होता है; क्योंकि स्पर्शादि गुणों से सहित और पूरन-गलन करनेवाला पुद्गल, सर्वत्र ही सबको अनुभव में आता है। जैसे, अत्यन्त मीठा एवं उचितरूप से पके हुए आम का उचित समय पर स्वाद लिया जाए तो मनुष्य आनन्दित होता है। यदि भूलवश योग्य समय आने पर आम को काम में नहीं लेंगे तो आम का सड़ जाना स्वाभाविक है। जिसतरह आम की बात कही, उसीतरह प्रत्येक फल की बात समझ लेना चाहिए। आम पहले तो पेड़ पर कैरी के रूप में दिखता है। धीरे-धीरे बड़ा होता है अर्थात् उसका पूरण होना चालू है और बाद में पूर्ण पक जाने के बाद जो प्रक्रिया होती है, उसे गलन कहते हैं। इसप्रकार जो वस्तु अत्यन्त स्पष्टरूप से अनुभव में आती है, उसे न मानने की बात कैसे हो सकती है? जिसतरह कोई व्यक्ति सोया हो तो उसे जगाना सरल है; क्योंकि दुनिया में सोते हुए मनुष्य को हमेशा ही जगाया जाता है; लेकिन जिसने जानबूझकर नींद का बहाना बनाया है, उसे जगाना कैसे सम्भव है? उसी तरह पुद्गल नामक वस्तु का ज्ञान हमें रात-दिन हो ही रहा है; इसलिए पुद्गलद्रव्य को मानना ही चाहिए। ९. प्रश्न - धर्मद्रव्य की सिद्धि कैसे होती है? उत्तर - एक जगह से अन्य जगह पर जाने का अर्थात् स्थानान्तर का (9)Page Navigation
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