Book Title: Jin Dharm Vivechan
Author(s): Yashpal Jain, Rakesh Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 40
________________ जिनधर्म-विवेचन ८. इस विश्व में जीव अनन्त हैं एवं सभी स्वतन्त्र हैं- ऐसा जानने के कारण मैं किसी जीव का भला-बुरा नहीं कर सकता और मेरा भी कोई जीव, कुछ बिगाड़ - सुधार नहीं कर सकता ऐसी सच्ची प्रतीति होती है। ७८ ९. इस विश्व में एक लोक व्यापक ब्रह्म ही चेतन है, अंगुष्ठमात्र आत्मा है, जगत् में जीव जैसा कोई चेतन द्रव्य है ही नहीं; इत्यादि मिथ्या मान्यताओं का निराकरण होता है। १०. निजात्मस्वरूप का ज्ञान होने से परकर्तृत्व का भाव टूटता है। ११. जीव को जानने के कारण जीवतत्त्व से जीवद्रव्य भिन्न है और मेरा निज जीवतत्त्व ही दृष्टि का विषय एवं ध्यान का ध्येय है - ऐसा निर्णय होता है एवं धर्म प्रगट करने का पुरुषार्थ जागृत होता है। पुद् गलद्रव्य का सामान्य स्वरूप ६२. प्रश्न - पुद्गल किसे कहते हैं? उत्तर - जिसमें स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण- ये विशेष गुण होते हैं; उसे पुद्गल कहते हैं। तत्त्वार्थसूत्र के पाँचवें अध्याय के ५वें सूत्र में कहा है- 'स्पर्श-रसगन्ध-वर्ण-वन्तः पुद्गलाः ।' इसी अध्याय के २३ वें सूत्र में 'रूपिणः पुद् गलाः ।' - ऐसा भी कहा है। 'जिसमें स्पर्श, रस, गन्ध एवं वर्ण - ये विशेष गुण पाये जाते हैं; उसे मूर्तिक कहते हैं। अतः पुद्गल रूपी अर्थात् मूर्तिक है' तथा पुद्गल के सम्बन्ध में आचार्य अकलंकदेव ने अन्य प्रकार से एवं आकर्षकरूप में कथन किया है " जैसे 'भा' को करनेवाला 'भास्कर' कहलाता है, उसी तरह जो भेद, संघात और भेद-संघात से पूरण और गलन को प्राप्त हों, वे पुद् गल कहलाते हैं। परमाणुओं में भी शक्ति की अपेक्षा पूरण और गलन होता है तथा प्रतिक्षण अगुरुलघुगुणकृत गुण- परिणमन, गुण-वृद्धि और गुण (40) पुद्गलद्रव्य - विवेचन हानि होती रहती है; अतः उनमें भी पूरण और गलन व्यवहार मानने में कोई बाधा नहीं है। अथवा पुरुष अर्थात् जीव, जिनको शरीर, आहार, विषय और इन्द्रिय-उपकरण आदि के रूप में निगलें या ग्रहण करें; वे पुद्गल हैं। परमाणु भी स्कन्ध दशा में जीवों के द्वारा निगले ही जाते हैं।" पुद्गल से सम्बन्धित अन्य महत्त्वपूर्ण विषय - १. वास्तव में परमाणु ही पुद्गलद्रव्य है। २. मात्र पुद्गल ही मूर्तिक द्रव्य है। ३. पुद्गलद्रव्य अनन्तानन्त एवं क्रियावान हैं। ७९ ४. पुद् गल में स्वभाव एवं विभाव ये दोनों पर्यायें होती है। ५. जल भी पुद्गल का विकार होने से पुद्गलात्मक है, इसलिए स्पर्शादि सर्व गुण जल में है। जल ही जिनका शरीर है, वे जलकायिक जीव हैं; यह तो सबको मान्य ही है । ६. इसी प्रकार हवा, अग्नि, पृथ्वी, वनस्पति आदि भी पौद्गलिक हैं। वायु, वायुकायिक जीवों का शरीर है तथा अग्नि, पृथ्वी, वनस्पति आदि भी उन उन जीवों के शरीर हैं। ६३. प्रश्न - स्पर्शादि गुणों की कितनी और कौनसी पर्यायें हैं ? उत्तर - स्पर्शादि गुणों की कुल २० प्रकार की पर्यायें हैं; वे निम्न प्रकार हैं स्पर्श गुण की आठ पर्यायें - १. स्निग्ध, २. रूक्ष, ३. शीत, ४. उष्ण, ५. हलका, ६. भारी, ७. मृदु और ८. कठोर । रस गुण की पाँच पर्यायें - ९. खट्टा, १०. मीठा, ११. कडुवा, १२. कषायला और १३. चरपरा । गंध गुण की दो पर्यायें - १४. सुगन्ध और १५. दुर्गन्ध । वर्ण गुण की पाँच पर्यायें - १६. काला, १७. नीला, १८. पीला, १९. लाल और २०. सफेद ।

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