Book Title: Jin Dharm Vivechan
Author(s): Yashpal Jain, Rakesh Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 98
________________ १९४ जिनधर्म-विवेचन मैं तो मात्र जीव को ही सीधे जानना चाहता हूँ। क्या आप मुझे ऐसे जीव का ज्ञान करा पाएँगे? तो आपका उत्तर होगा - नहीं, क्योंकि जीवद्रव्य का ज्ञान उसकी उक्त पर्यायों के बिना कराना सम्भव नहीं है। इसका स्पष्ट अर्थ यह कि बिना पर्यायों के द्रव्य का परिचय करना/कराना सम्भव नहीं है। 'यह जीवद्रव्य है' - ऐसा निर्णय होने पर भी जानने में तो पर्याय ही आएगी और जाननेवाला भी अपने ज्ञानगुण की पर्याय से ही जानेगा। जानना और जानने में आना, बिना पर्याय के सम्भव नहीं है, इससे सिद्ध होता है कि पर्याय ही गुण और द्रव्य का ज्ञापक है। इसप्रकार वस्तु का यथार्थस्वरूप हमारी समझ में आ जाता है। यद्यपि धर्मादि चार द्रव्यों में तो एक-एक ही विशेष गुण होने से उनमें पर्याय की विविधता अधिक स्पष्ट रीति से ज्ञात नहीं होती है; तथापि अस्तित्व आदि छह सामान्य गुणों की पर्यायें तो उनमें भी होती हैं; अत: उनसे धर्मादि द्रव्यों की पर्यायों को भी जान सकते हैं। ___ इसप्रकार यहाँ जीव और पुद्गल की विशिष्ट पर्यायों के माध्यम से वस्तुस्वरूप का निरूपण किया है। यहाँ पर्यायों से गुण और गुण के द्वारा द्रव्य का निरूपण किया गया है। ४. जीवादि सात तत्त्वों में जीव और अजीव, - ये दो सामान्य तत्त्व हैं तथा आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष - ये पाँच विशेषतत्त्व हैं। सभी सात तत्त्व जानने की अपेक्षा उपादेय हैं; इनमें ध्यान करने योग्य ध्येय तत्त्व मात्र जीवतत्त्व ही होने से वह परम उपादेय है। अजीवतत्त्व मात्र ज्ञेय/जानने योग्य है। आस्रव-बन्ध - ये दोनों तत्त्व दुःखरूप, दुःख के कारण और संसार को बढ़ानेवाले हैं; अतः सदैव हेय/त्यागने योग्य हैं। जबकि संवर-निर्जरा - ये दोनों तत्त्व मोक्ष के कारणभूत होने से कथंचित् प्रगट करने की अपेक्षा उपादेय हैं। मात्र एक मोक्षतत्त्व ही प्राप्त करने योग्य उपादेय हैं। पर्याय गुण-विवेचन इस प्रकार हेय-ज्ञेय-उपादेय तत्त्वों का ज्ञान, मात्र पर्याय के कारण ही होता है; अतः पर्याय का ज्ञान, मोक्षमार्ग तथा मोक्ष प्राप्त करने के लिए अत्यन्त उपयोगी है। २३०. शंका - पर्याय की कर्ता पर्याय ही है - ऐसा भी सुनने को मिलता है, इसका क्या तात्पर्य है? क्या यह विषय जिनागम में भी आया है? ___ समाधान - जब अधीर (उतावले) मनुष्य को किसी विशिष्ट पर्याय को प्रगट करने की बहुत आकुलता होती है तो उसकी बेचैनी मिटाने के लिए और वस्तुस्वरूप की सुनिश्चितता बताने के लिए भी ज्ञानियों ने कहा है कि - प्रत्येक पर्याय अपने ही समय पर व्यक्त होती है; आकुलता करने से कोई पर्याय अल्पकाल में अथवा तत्काल प्रगट होगी - ऐसा कभी नहीं होता। यही कारण है कि प्रत्येक पर्याय का अपना-अपना जन्मक्षण निश्चित होता है - ऐसा समझाया है। ___ यदि वस्तु-व्यवस्था की अपेक्षा से सोचा जाए तो प्रत्येक द्रव्य की प्रत्येक पर्याय अपने-अपने काल में सुनिश्चित है, खचित है, उसे आगेपीछे कौन और कैसे कर सकता है? पर्याय/अवस्था को आगे-पीछे करने का परिणाम ही मिथ्यात्व है। इस विषय की विशद् जानकारी के लिए टीकासहित प्रवचनसार गाथा १६ एवं पंचास्तिकाय गाथा ६२ जरूर देखें। पर्याय के जन्मक्षण के सम्बन्ध में भी स्पष्ट कथन प्रवचनसार गाथा १०२ की टीका में आया है. इन्हें पढ़ने से वस्तु-व्यवस्था का ज्ञान निर्मल होगा। २३१. शंका - हम सबको पर्याय में सुख प्रगट करना है या जीवतत्त्व में सुख उत्पन्न करना है? उतर - जीवतत्त्व में सुख तो स्वभावगत अनादिकाल से ही है; अतः जीव में सुख उत्पन्न करने का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। हमें गुड़ या शक्कर को मीठा थोड़े ही बनाना है; हमें तो भोजन को मीठा बनाना है। वास्तविकता का ज्ञान एवं श्रद्धान करना ही अति महत्त्वपूर्ण कार्य है। (98)

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