Book Title: Jin Dharm Vivechan
Author(s): Yashpal Jain, Rakesh Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 96
________________ जिनधर्म-विवेचन हम आपसे पुनः प्रश्न करते हैं कि आपने आम को पकने के लिए कमरे के अन्दर पाल में अपने ही हाथों से रखा था तो आम के पीलेपन में कमरा, हाथ और पाल आदि ने कितने प्रतिशत काम किया है? और वर्णगुण ने कितने प्रतिशत काम किया है? इस पर आपका उत्तर होगा कि आम के पीलेपन में कमरा, हाथ, पाल आदि ने एक प्रतिशत भी काम नहीं किया। आम में पीलापन शत-प्रतिशत आम के वर्णगुण में से ही आया है; क्योंकि आप समझ चुके हैं कि पर्या गुण में से ही आती है, अन्य गुण और अन्य द्रव्य में से नहीं । जैसे, आम में, आम के ही वर्णगुण में से पीलापन आया है। इसीप्रकार समझना चाहिए कि आम में जो मीठापन आया है, वह आम के ही रसगुण में से आया है, अन्य गुण या अन्य द्रव्य में से नहीं । १९० पानी को प्रासुक करने के लिए हमने पानी को दोहरे छन्ने से छान कर अग्नि पर रखा । १५ मिनिट पश्चात् देखा तो पानी बहुत गरम हो गया। अब हमें प्रश्न उत्पन्न होता है कि पानी में जो उष्णता आई है, वह उष्णता अग्नि में से आई अथवा पानी के स्पर्शगुण में से आई है ? कोई कह सकता है कि पानी में उष्णता अग्नि में से आई है; इसलिए तो पानी गरम हुआ है। इस पर हमारा पुनः २२६. प्रश्न है - बताइए कि अग्नि में से उष्णता निकलकर पानी में प्रविष्ट हुई है तो अग्नि की उष्णता कुछ कम तो होनी ही चाहिए। अब बताइए कि अग्नि में से उष्णता कितनी कम हुई? तब सहज ही उत्तर आएगा अग्नि की उष्णता कुछ भी कम नहीं हुई है। इसका स्पष्ट अर्थ यह हुआ कि अग्नि में से उष्णता निकल र पानी में प्रविष्ट नहीं हुई, अतः अग्नि में से उष्णता पानी में आई है - यह कथन असत्य है। पानी के गरम होने में अग्नि निमित्त जरूर है। पर्याय की परिभाषा के अनुसार विचार करते हैं तो यह विदित होता है कि पानी का स्पर्शगुण पहले शीतल था, अतः पानी के स्पर्शगुण में से (96) पर्याय- विवेचन १९१ ही उष्ण अवस्था / पर्याय आई है। पानी में आई हुई उष्णता का कर्ता स्पर्शगुण है; रस, गन्ध, वर्णगुण अथवा अग्नि आदि अन्य द्रव्य नहीं । इसी प्रकार जीवद्रव्य के ज्ञानगुण की पर्याय का विचार निम्नानुसार किया जा सकता है - युवा तीर्थंकर महावीर ने अपनी ३० वर्ष की आयु में दिगम्बर साधु अवस्था का स्वीकार किया था। उसके पश्चात् १२ वर्ष तक साधु अवस्था में आत्म-साधना की थी । तत्पश्चात् उन्होंने ४२ वर्ष की आयु में केवलज्ञान प्राप्त किया। यहाँ यह विचार करना है कि चार ज्ञानधारी / अल्पज्ञानी मुनिराज महावीर को जो केवलज्ञान हुआ, क्या वह केवलज्ञान, ज्ञानगुण में से प्रगट हुआ अथवा उनके शरीर की दिगम्बर अवस्था से या महाव्रत पालनरूप उनके पुण्य से उत्पन्न हुआ? दिगम्बर अवस्था तो शरीर अर्थात् पुद्गल की परिणति है। पुद्गल की पर्याय में से केवलज्ञान उत्पन्न हो ही नहीं सकता; क्योंकि ज्ञानरहित शरीर, केवलज्ञान कैसे उत्पन्न कर सकता है? महाव्रतरूप विकल्पात्मक परिणाम तो जीव की आसव-बन्धरूप विकारी अर्थात् दुःखरूप अवस्था है। दुःखरूप अवस्था से अनन्तसुखस्वरूप केवलज्ञान कैसे उत्पन्न हो सकता है? जब हम पर्याय की परिभाषा के अनुसार विचार करते हैं, तब ज्ञानगुण में से ही केवलज्ञान उत्पन्न होता है, यह बात स्पष्ट समझ में आती है। इसका अर्थ यह भी न मानें कि दिगम्बर अवस्था को स्वीकार किये बिना ही केवलज्ञान जाता है; केवलज्ञान के लिए निमित्तरूप से दिगम्बर मुनि अवस्था का होना अनिवार्य है। हमें भूख लगी हो और उसी समय पुण्योदय से अनुकूल भोजन मिल जाए, जिसे ग्रहण करके हमें शान्ति या समाधान प्राप्त हो। लेकिन यहाँ यह विचार करना है कि हमें जो शान्ति या समाधान मिला, वह क्या भोजन में से आया अथवा अपनी आत्मा के चारित्रगुण में से आया ?

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